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गल्प-समुच्चय


खूब सत्संग रहा। पण्डित मदनमोहन शास्त्री, एम॰ ए॰ को स्वामी चिद्घनानन्द के रूप में देखकर सुलतानपुर निवासी बड़े आश्चर्य्यान्वित हुए। हम लोगों के आश्चर्य्य की भी, यह जानकर कि स्वामी चिद्घनानन्द उस समय सुलतानपुर में डिप्टी कलेक्टर थे जिस समय बाबू कृष्णदास वहाँ के तहसीलदार थे, सीमा न रही। स्वामीजी ने तुलसी-कृत "रामायण" की एक प्रति शारदा को और अपने पढ़ने की "चित्सुखी" नवीन को उपहार-स्वरूप भेंट की। उस दिन से स्वामीजी का पता और किसी को तो क्या, उनके अभिन्न-हृदय मित्र कृष्णदास बाबू को भी न लगा।

बीस बरस हो गये, पर हरद्वार की वह यात्रा और शारदा का गोते खाया हुआ वह म्लान चेहरा, हमें आज भी खूब याद है। स्वामीजी का स्मरण आते ही उनके प्रति श्रद्धा का भाव हमारे हृदय में आज भी वैसा ही फिर हो जाता है। दिन चले गये, पर स्मृति-पट पर उस समय का चित्र वैसा ही खिंचा हुआ है।