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स्वामीजी

का निश्चय कर लिया था। यदि आज यह घटना न होती, तो भी तुमसे यह प्रस्ताव किया ही जाता। किन्तु अब तो जिस रत्न का तुमने स्वयं उद्धार किया है, उस पर तुम्हारा स्वयं भी अधिकार हो गया है। शारदा बड़ी लजीली और शुभ गुण सम्पन्ना लड़की है। तुम-जैसे निष्ठावान् हिन्दू की पत्नी बनने के लिए यह सर्वथा योग्य है। हमारा-तुम्हारा कुछ ही दिनों का परिचय है। फिर भी तुम्हारी हम पर श्रद्धा न सही, तो कृपा ज़रूर ही है। इस छोटे-से रिश्ते से ही हम तुमसे यह प्रार्थना करने की धृष्टता कर कहे हैं। आशा है, हमारी प्रार्थना स्वीकार करके हमारे मित्र का उपकार करने में अब तुम आगा-पीछा न करोगे।"

नवीन ने—"मुझे आपकी आज्ञा अविचार्य रूप से मान्य है"—कहकर सिर झुका लिया। उस दिन शाम को "पण्डितजी" के ट्रंक का ताला तोड़ कर उसमें जितने रुपये थे निकाल लिये गये और उनको मिठाई और फलों से बदल कर मित्र-मण्डल ने गङ्गा-तट पर षोडशोपचार से पेट-भगवान की पूजा की। उस दिन पण्डितजी को भोजन बनाने की तकलीफ़ भी न उठानी पड़ी।

(३)

अगले सहालग मे ही सुलतानपुर में कृष्णदास बाबू के निवास-स्थान पर नवीन का विवाह बड़ी सादगी से सम्पन्न हो गया। मित्र-लण्डली उपस्थित थी। स्वामीजी भी पधारे थे।