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गल्प-समुच्चय

यह कहकर उसने पास पड़ा हुआ बेलन उठाया। उसे देखकर सुखदयाल बिलबिला उठा; परन्तु अभी उसके शरीर पर पड़ा न था कि उसकी लड़की दौड़ती हुई आई और कहने लगी- "चाचा आया है।"

( ६ )

सुखदेवी का हृदय काँप गया। वह बैठी थी, खड़ी हो गइ और बोली-“कौन-सा चाचा? गुजरातवाला?"

"नहीं पालू।"

सुखदेवी और बालकराम दोनों स्तम्भित रह गये। जिस प्रकार बिल्ली को सामने देखकर कबूतर सहम जाता है, उसी प्रकार दोनों सहम गये। आज से दो वर्ष पहले जब पालू साधू बनने के लिए बिदा होने आया था, तब सुखदेबी मन में प्रसन्न हुई थी; परन्तु उसने प्रकट ऐसा किया था, मानों उसका हृदय इस समाचार से टुकड़े-टुकड़े हो गया है। इस समय उसके मन में भय और व्याकुलता थी; परन्तु मुख पर प्रसन्नता की झलक थी। वह जल्दी से बाहर निकली और बोली- "पालू।"

परन्तु वहाँ पालू के स्थान में एक साधु महात्मा खड़े थे, जिनके मुख-मण्डल से तेज की किरणें फूट-फूट कर निकल रही थीं। सुखदेवी के मन को धीरज हुआ; परन्तु एकाएक खयाल आया, यह तो वही है, वही मुँह, वही आँखें, वही रङ्ग, वही रूप; परन्तु कितना परिवर्तन हो गया है। सुखदेवी ने मुसकराकर कहा-"स्वामीजी, नमस्कार करती हूँ।"