पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/७१

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(२) अँधेरी दुनिया

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(१)

मुझमें और तुममें बहुत भेद है। तुम सहस्रों दृश्य देखते हो, मैं केवल आवाजें सुनती हूँ। पृथ्वी आकाश, बाग बगीचे, बादल, चन्द्रमा, तारे यह मेरे लिए ऐसे रहस्य हैं, जो कभी न खुलेंगे। पर्वत और खोह में मेरे निकट एक न ही भेद है और वह यह कि पर्वत के ऊपर चढ़ते समय दम फूल जाता है; खोह में उतरते समय गिरने का भय लगा रहता है। जब लोग कहते हैं, यह पर्वत कैसा सुन्दर है वह खोह कैसी भयानक है, तब मैं इन दोनों के अर्थ नहीं समझ सकती। अपने मस्तिष्क पर आत्मा की पूरी शक्ति से जोर डालती हूँ; परन्तु मस्तिष्क काम नहीं करता और मैं सटपटाकर रह जाती हूँ। शस्यश्यामल खेतों की हरियाली, सुनील जल के स्रोतों की सुन्दरता, बच्चों की मनोहरता, पुरुष का सौन्दर्य, स्त्री का रूप लावण्य, इन्द्र-धनुष का रङ्ग, काली घटा का जादू, चन्द्रमा की छटा, फूलों का निखार, यह समस्त शब्द मेरे निकट विस्तृत और