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दूसरी कथा


गिरी थीं कि लड़कों ने आध-आध सेर और बाज़ों ने सेर-सेर भर चुन ली।

इसके बाद विद्रोही और नगर-वासियों ने मेगज़ीन को खूब लूटा। जितना सामान -- टोपी, बंदूक़, तलवार और संगीनें -- ले सके, उठाकर ले गए। ख़लासियों ने अपने घरों को उम्दा- उम्दा हथियारों से भर लिया। और, रुपए के तीन सेर के हिसाब से तोल-तोलकर बेच डाला। ताँबे की चादरें रुपए की तीन सेर बिकती थीं। बंदूकों की क़ीमत अधिक-से-अधिक आठ आना थी, परंतु भय से कोई नहीं लेता था। अच्छी-से- अच्छी अँगरेज़ी किर्च चार आने को भी महँगी थी, और संगीन तो एक आने में भी महँगी थी। तोसदान और परतले इतने अधिक थे कि इनके लूटनेवालों को बेचते समय एक पैसा भी नहीं मिला, अर्थात् किसी ने खरीदा ही नहीं। मजनू के टीले में जितनी बारूद थी, उसमें से आधी तो गूजरों आदि ने टली और आधी नगर में आ गई।


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