पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१०२

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ch -- तीसरी कथा पूर्ण ढंग का संबंध बीच में न होता, तो हमारी जान बचनी संभव न थी। क्योंकि उसने कई बार अपना सिर जमीन पर रख दिया। और, एक यार विद्रोहियों ने इसके सिर पर पैर रखकर सिर काटना चाहा, मगर इसने कहा, मैं सिर फटाना इस नियत से स्वीकार करता हूँ, यदि तुम प्रतिज्ञा करो कि औरतों की वेपर्दगी और अपमान न करोगे । इस बात से विद्रोहियों को दया आ गई और उन्होंने छोड़ दिया। इससे अधिक वीरता का काम यह किया कि केवल छ दिन अस्पताल में रहे थे कि ब्रगेडियर विलसन साहब दिल्ली जाने लगे। इनको पता लगा, तो यह भी उनके पास पहुंचे, और साथ चलना चाहा । पर जख्म अब तक हरे थे, इसलिये उन्होंने स्वीकार न किया। फिर भी, हमने सुना है, वह केवल नौ दिन अस्पताल में रहे, और दसवें दिन तोपखाना और लड़ाई का सामान, जो मेरठ को फौज के लिये जा रहा था, साथ हो गए । और, हिंडन के पुल पर पहुंचकर फौज के साथ दिल्ली की छावनी में पहुंच गए । १७ जून तक फौज के साथ रहे । इस बीच में ३ बार इन्हें सरसाम हुआ-दो बार रास्ते में और एक बार मोरचाल छावनी में, जहाँ वह जरूरी कामों में संलग्न थे। तीसरी बार सरसाम होने का कारण यह हुआ कि प्रथम तो शरीर कम- जोर, फिर दिन-भर सूरज की तेज़ी में काम में लगे रहना । अंततः १७ जून को मेरठ वापस किए गए, मगर यह वापसी