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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१०७

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सादर के पत्र करूँगा। अगर आगे जाओगे, तो उन मुसलमानों के हाथ से, जो लूटने और फिरंगियों के मारने के लिये फिर रहे हैं, अवश्य मार डाले जाओगे। निदान, इन लुहारों के साथ मैं इनके गाँव गया । वास्तव में इन्होंने मेरी बड़ी खातिर की। किसी ने पहनने को धोती दी, किसी ने टोपी दी, किसी ने दूध पिलाया, किसी ने रोटी दी। अभिप्राय यह कि मुझे जीने की आशा बंधी । पर मैं इतना घबराया हुआ था कि मुझसे अच्छी तरह बोला भी नहीं जाता था। उन्होंने मुझे चारपाई दी । मैं उस पर लेट गया, पर मुझे नींद न आई । मैंने उन आदमियों से कहा, मैं डॉक्टर हूँ। यह सुनकर उन्होंने और भी खातिर की। दूसरी सुबह को गाँव के चौधरी ने मुझे बुलवाया। तमाम गाँव फिरंगी डॉक्टर को देखने को इकट्ठा हो गया। मैं बिल्कुल थका-माँदा था, पर गाँववाले जो कुछ पूछते थे, उसका मैं साफ-साफ जवाब देता था। विशेषकर जब उन्होंने देखा कि मैं उनके मजहब और रस्मों को पूरे तौर पर जानता हूँ तो मुझे जिंदा रखने के लिये वे मेरा बहुत खयाल रखने लगे। वे यह कहते थे कि हम शक्ति-भर तुम्हें बचावेंगे । मैं इस गाँव में रहता था। उस समय मैने सुना, निकट के किसी गाँव में उड साहब रहते हैं। इस गांव का नाम समीपुर है। इस गांव के एक आदमी ने मुझसे आकर कहा कि मेरे गाँव में डॉ० उड साहब नामी हैं । उनको कुछ दवाएँ चाहिए। तुम सब हिंदोस्तानी दवाएँ जानते हो, कृपा कर