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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१२८

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आठवीं कथा ११६ . . सुबह को सवारी के वास्ते दो घोड़े, एक खच्चर और एक गधा तहसील कसौनी तक जाने को दिया। वहाँ पहुँचकर हमें विश्वास हुआ-हम समझी, अब हमारी रक्षा हो गई। दूसरे दिन कर्नाल से हमारे लिये शिकरम आई, और महाराजा पटियाले के सिपाही रक्षा के लिये साथ आए । हम सब वहाँ से चलकर ता०२० मई को कर्नाल पहुंचे। यहाँ पहुँचकर हम सीधे रगही साहब के मकान पर गए । और, सत्य बात तो यह है कि उन्होंने हम भिक्षुओं और शरणा- गतों के साथ वह व्यवहार किया, जो एक सच्चे ईसाई के लिये उचित है। एक सप्ताह से अधिक हम कर्नाल में रहे । इसके बाद फिर चले, और अंबाले पहुँचे, और वहाँ से डाक को गाड़ी पर कालका पहुँचे । रास्ते में बहुधा गाड़ी से उतरकर खुद गर्म रेत मे गाड़ी खींचनी पड़ती थी। डॉ. साहब के जखम को भी हमने ११ दिन तक धोया और बांधा। घाव इतना खराब और गहरा था कि गोली से दाँतों के जबड़े उड़ गए थे। ११ दिन बाद एक डॉक्टर ने उस घाव को देखा था। हमारा भागना बहुत खराब रहा। हमने इस भाग-दौड़ में बड़े कष्ट पाए । और, अत्यंत कड़ी खराब, बल्कि मनुष्यता से परे खोटी-खरी बातें सुननी पड़ी। सब कुछ लुट गया। हमारे और मेपल साहब की मेम के पास जवाहरात के प्रकार की बहुत-सी चीजें थीं । कुछ हमने खुद खरीदी थी, और