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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१४५

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ग़दर के पत्र

मेम साहब ने सकुशल सब्ज़ी मंडी में पहुँचकर ईश्वर को

धन्यवाद दिया।

मेम साहब बुरी हालत में थीं। उन्हें देखकर हमारे सिपाही रोने लगे। उनके कूले पर एक घाव था, और उनका अँगूठा बिल्कुल घिस गया था। क्योंकि क़ैद में उनके अँगूठे को बाँध- कर एक जगह कस दिया था। हमारे सिपाहियों ने उनकी ख़ातिर की। कोई पानी लाया, कोई शराब, कोई रोटी और कोई गोश्त। पर उन्होंने दुर्बलता के कारण न कुछ खाया न पिया। थोड़ी देर तक लोग इनके चारो तरफ़ जमा रहे, और तरह-तरह की बातें पूँछते रहे। यह तंग आ गईं। मगर फिर भी मेम साहब ने सबका संतोष-जनक उत्तर दिया। आख़िर कप्तान हेली साहब आ गए। उन्होंने एक डोली मँगवाकर, उसमें उन्हें सवार कराकर कैंप में भेज दिया। वहाँ इन्हें एक अलग डेरा दिया गया, और तमाम आवश्यक वस्तुएँ एकत्रित कर दी गई। शहर से भागने के समय इनके पास एक पुराना मैला कपड़ा था, जिसको इन्होंने अपने शरीर पर लपेट लिया था। एक टुकड़ा और था, जो इनके सिर पर लिपटा हुआ था। न हाथों में दस्ताने और न पाँवों में साबित जूतियाँ, केवल एक फटी-पुरानी हिंदोस्तानी जूती थी। वास्तव में वह इससे ज्यादा ख़राब दशा में नहीं हो सकती थीं।

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