यहाँ तक कि गली से बाहर निकल आए, जिसमें इसका
भाई रहता था। इसके बाद वह ठहर गया, और इशारे से
मुझे बुलाया। मैं पास गया, तो उसने कहा कि मेरा भाई
बेईमान है। वह कभी तुमको न बचाता। और, मैं इस बहाने
से निकल आया हूँ कि ऐसे वक्त़ शहर में रहना ठीक नहीं,
जब कि चारो तरफ़ फ़साद हो रहा है। मैं तो यहाँ नहीं
रहूँगा, और गाँव जाता हूँ। अंत में हम दोनो शहर की
फसील से बाहर निकल गए, और किसी ने हमको न रोका।
हम सड़क के रास्ते तीन मील के लगभग गए होंगे कि धोबी ने
सलाह दी कि अब कर्नाल जाना उचित है। कर्नाल का रास्ता
वहाँ से दूर था, और हमें तमाम शहर का चक्कर काटकर
वहाँ पहुँचना था। हम चले। रास्ते में बहुत-से आदमी
मिले, पर कोई बोला नहीं। हम धीरे-धीरे चल रहे थे, और
लगभग संध्या समय कर्नाल की सड़क पर पहुँचे। यहाँ
मामला ही कुछ और था। जो लोग कर्नाल जाते थे, उनकी
तलाशी ली जाती थी। हमारी भी बारी आई। विद्रोहियों ने
हमें घेर लिया, और कहने लगे, यह बूढ़ा बड़ा होशियार है, लूट-
खसोट का माल-टाल लिए जाता है। धोबी ने बिना विलंब
कहा, मेरा बोझ देख लो। जब देख लिया और कुछ न पाया, तो
हमें छोड़ दिया। तब मैंने धोबी से कहा कि भविष्य में यदि कोई
दल विद्रोहियों का मिले, तो पहले ही से कहना चाहिए कि
जाओ, फ़िरंगियों को लूटो। और, इस लूट-पाट तथा क़त्ल का
पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१५६
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४७
शिक्षा-प्रद दृश्य