पत्र न.३ (यह पत्र जनरल सर हेनरी वर्नार्ड कमांडर-इन-चीफ ने जॉर्ज कार्निकदारेंस के नाम १७ जून, ५७ को भेजा था।) प्रिय वारेंस! मैंने अभी आपकी चिट्ठी पढ़ी । इससे मुझे कुछ तसल्ली हुई, इसलिये कि आपने इस तजवीज़ को नापसंद किया कि मैं अपनी अल्प सेना लेकर देहली में दाखिल होने का खतरनाक तजुरवा करूँ । इस तरह से कि मेरा कैंप, हस्पताल और कमसरियट तथा खजाना । सारांश यह कि मेरी सेना का सारा सामान अरक्षित दशा में पड़ा रह जाय । मैं स्वीकार करता हूँ कि जो पोलिटिकल सलाहकार मेरे साथ काम कर रहे हैं, उनकी सलाह से प्रभावित होकर मैं अचानक और जबर्दस्त आक्रमण करने के प्रस्ताव पर सहमत हो गया था, जिसमें ऊपर वर्णित सारी बातों की जोखिम साथ थी। केवल सौभाग्य से ही यह तजवीज़ अमल में आने से रुक गई। संभव है, ईश्वर कृपा करे, इसलिये जो कुछ मैंने सुना है, और जिन साहबों से सम्मति करना मेरा कर्तव्य था, उनको रायों पर विचार करने के बाद मुझे यह विश्वास हो गया कि विजय उतनी ही भयानक सिद्ध होती, जितनी कि हार। .
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