पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/५४

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अँगरेजों की विपत्ति ४५ जब फ्रेजर साहब गोली खाकर घायल हुए, तो उसी भवस्था में उन्होंने दो विद्रोहियों को मार डाला, और गाड़ी पर सवार होकर भाग चले । यद्यपि घाव गहरा था, और उससे बहुत रुधिर वह रहा था, तथापि गाड़ी चलाने की शक्ति अवशिष्ट थी। अथवा प्राणों के भय से साहस अपना काम कर रहा था। इसी तरह भागे जा रहे थे कि एक विद्रोही पाया, और उसने साहब के साईस को तलवार देकर कहा कि तू इसको मार डाल | आततायी साईस ने तलवार ले साहव के एक हाथ ऐसा मारा कि सिर धड़ से अलग जा गिरा । फिर कप्तान डग्लस को भी मार डाला । इसके बाद विद्रोही दीवाने आम की तरफ गए । वहाँ दो गरीब मिसें थीं, उनको भी इन दुष्टों ने न छोड़ा, और बंदूक का निशाना बना ही दिया । वहाँ से निकलकर सीधे दरियागंज का रास्ता लिया । यहाँ आकर तमाम मकानों में आग लगा दी। ये मकान ज्यादातर अँगरेजों के थे। इस बीच में एक और रेजिमेंट विद्रोहियों की घुस आई, और आते ही शहर के लुच्चों और गुंडों से कहा कि तुम लोग शहर को खूब लूटो, हम लूटने में सम्मिलित नहीं होंगे। जो विद्रोही दरियागंज को जला रहे थे, उन्होंने वहाँ ५ अँगरेजों और दो मेमों को मार डाला । बाकी जितने ईसाई थे, वे सब राजा किशनगढ़ की कोठी में जाकर आश्रित हुए । जब दरियागंज जलकर खाक हो गया, तब विद्रोही वहाँ से बैंक