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ग़दर के पत्र

उन्हें अत्यंत निर्दयता और अपमान-पूर्वक क़त्ल कर डाला।

और, शफ़ाख़ाने के हिंदोस्तानी और अँगरेज़ डॉक्टरों को शफ़ाख़ाने के अंदर क़त्ल कर डाला। इन बेचारों की लाशें तीन दिन तक बेक़ब्र और कफ़न के पड़ी रहीं। आख़िर चौथे रोज़ स्वयं विद्रोहियों ने इनको यमुनाजी में फिकवा दिया।





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