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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/५८

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विद्रोहियों का बादशाह से वेतन माँगना

अब विद्रोहियों ने बादशाह से प्रार्थना की कि या तो दो महीने की तनख्वाह दो, या हमारा दैनिक वेतन नियत कर दिया जाय, यानी रसद आदि रोज़ाना दिलवा दी जाय। बादशाह ने शहर के सब महाजनों को बुलवाकर आज्ञा दी कि यदि वे सिपाहियों की माँँग पूरी न करेंगे, तो सबको अपनी जानों से हाथ धोना पड़ेगा। (बेचारे बादशाह ग़रीब और मजबूर थे, इसलिये नगर की बर्बादी और क़त्लेआम को बचाने के उद्देश्य से यह हुक्म महाजनों को दिया होगा)। महाजनों ने बादशाह की सेवा में निवेदन किया कि हम इन्हें सिर्फ़ बीस दिन तक दाल-रोटी खिला सकते हैं, इससे अधिक हममें शक्ति नहीं। विद्रोही इस पर संतुष्ट न हुए, और कहने लगे― “हम तो मरने-मारने पर तुले बैठे हैं। जीवन के जो थोड़े-से दिन बाकी हैं, उनमें भी दाल-रोटी खायँ, यह हमसे न होगा। निदान, बादशाह ने सब बातें सुनकर चार आने दैनिक नियत कर दिए।”

इसके बाद विद्रोहियों ने नगर की नाकेबंदी कर दी, और प्रत्येक द्वार पर दो-दो तोपें चढ़ा दी, तथा एक हजार मन बारूद छावनी की मेगज़ीन से उठा लाए। और, जितना गोला-