पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/६२

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. आप बीती की पहली कथा ५३ रहना चाहिए । जब मैं कमांडर अफसर के बंगले से लौटा, तो रास्ते में मुझको नकौल साहब मिले। किंतु इनसे केवल इतना ही मालूम हुआ कि मेरठ के विद्रोही सवारों में लगभग १५० सवारों ने नावों के पुल पर अधिकार कर लिया है। और, मेरठ से आते हुए जो अँगरेज उनको मिला, उसे करत कर डाला। जब मैं अपने बंगले पर पहुँच गया, तो थोड़ी देर बाद वे दोनो तो मेरे बंगले के बराबर से शहर की तरफ जाती हुई दिखाई पड़ी, तो मुझे भरोसा हुआ कि विद्रोहियों के उपद्रव को दबाने के लिये रेजिमेंट नं०५४ और ये दोनो तो काफी होंगी । इसके बाद जो घटनाएँ हुई, उनकी कभी कल्पना भी न की थी। कितु मैंने आत्मरक्षा के विचार से ५ फेरी तमंचा भर लिया, और हुक्म दिया कि गाड़ी के घोड़े तैयार रक्खो दोपहर के १२ बजे के लगभग मेरे नौकरों ने मुझे खबर दी कि दरियगंज की छावनी जल रही है। और, मेरी रेजिमेंट के अजीटन साहब और कमांडिग अफसर छावनी की गए हैं। यह खबर सुनकर मैं भी सवार होकर गया, और देखा कि सिपाहियों को युद्ध-सामग्री बाँटी जा रही है। वहाँ से मैं अपनी कंपनी में गया, और सिपाहियों से बातचीत करने लगा। वे सब प्रकट में नेकचलन मालूम होते थे, और इस विद्रोह से सबने अज्ञानता प्रकट को। किंतु बहुत- तरक