पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/६३

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ग़दर के पत्र से सिपाही कमर-बंदी से अप्रसन्न प्रतीत होते थे, और कहते थे कि हम अभी शहर की साप्ताहिक नियुक्ति से वापस आए हैं। अभी अच्छी तरह रोटी-पानी से भी नहीं निपटे कि फिर हमें हुक्म दिया जाता है । इसके जवाब में मैंने कहा- संभावतः थोड़ी ही देर में विद्रोह मिट जायगा । तब आराम करना, क्योंकि एक रेजिमेंट और दो तो विद्रोहियों को तितर-बितर करने को भेजी जा चुकी हैं । मैंने उनसे यह भी कहा कि मैं विश्वास करता हूँ कि यदि आवश्यकता होगी, तो तुम सब लड़ोगे, और नमक का हक अदा करोगे। इसके जवाब में सिपाहियों ने कहा कि हमने सरकार कंपनी का नमक खाया है। हम हर तरह पर लड़ने-मरने के लिये तैयार हैं। उनमें से एक हवलदार अधिक शोर मचा रहा था, किंतु दूरदर्शिता की दृष्टि से स्पष्ट नहीं कहता था कि हम विद्रोहियों से नहीं लड़ेंगे, बल्कि यह कहता था कि कोई दुश्मन राजा बाबू आवेगा, तो उससे लड़ेंगे। थोड़ी देर बाद दोनो कंपनियाँ, जिनका जिक्र ऊपर आ चुका है, पहाड़ी की तरफ रवाना हुई कि वहां जाकर कयाम करें। जाने के समय दोनो कंपनियों के सिपाहियों ने बहुत शोर- गुल मचाया, जिस से मालूम होता था कि उन्हें बहुत प्रसन्नता है। उनकी किसी हरकत से यह संदेह न होता था कि वे विद्रोह का विचार भी करते हैं। मैं सिपाहियों के साथ बात-चीत कर रहा था, इतने में खबर पहुंची कि रेजिमेंट नंबरी ५४ ने नगर