गदर के पत्र लेकर कप्तान डी० टेस्टर आगे बढ़े, और पैदल फौज इनके पीछे चली। हिंदोस्तानी सिपाही जितने साथ थे, सब अत्यंत बेदिली से धीरे-धीरे चल रहे थे। जब पहाड़ी से आए, तो हमने देखा कि बग्घियां और तो कर्नाल के रास्ते पर जा रही हैं, और वजीराबाद के रास्ते को छोड़ दिया है। मैं अपने सिपाहियों के साथ पैदल चल रहा था, इसलिये कि मेरा घोड़ा मेरे साथ न था। मेरे सिवा और भी बहुत-से अफसर पैदल थे। जब हम अपनी लाइन के निकट पहुंचे, तो तमाम सिपाही उच्छृखत होकर लाइन में चले गए। मेरा बँगला भी निकट था, इसलिये मैं भी वहाँ चला गया, और घोड़े को तैयार पाकर उस पर सवार हो लाइन में आया, और सिपाहियों से पूछा, क्या तुम मेरे साथ चलने के लिये राजी हो ? मगर सिपाहियों ने कुछ जवाब न दिया । कितु, प्रकट में ऐसा मालूम होता था कि मेरा बोलना भी इन्हें विष लगता है। उस समय तमाम सिपाही छोटे-छोटे मुंडों में पृथक्-पृथक् बैठे थे। केवल एक सिपाही बदचलन मालूम होता था, जिसने मुझको अत्यंत कड़ा, उद्धत और बेहूदा जवाब दिया। इसके बाद मैं कर्नाल की तरफ चला), ताकि गाड़ियों से जा मिलूँ। कितु थोड़ी दूर जाकर वे दोनो तोपें, जो गाड़ियों के साथ थीं, देहली की तरफ आती मुझे मिलीं। वापस इसलिये आ रही थी कि गोलंदाजों ने कर्नाल जाने से इनकार कर दिया था।
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