पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/७५

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ग़दर के पत्र

जब नं० ७४ की रेजिमेंट शहर चली गई, तो कप्तान डी० टेस्टर

मय दो तोपों के पीछे रह गए। और, उन्होंने इस बात की चेष्टा की कि जल्दी से आगे बढ़कर उस विस्तृत स्थान पर अधि- कार कर लें, जिसके एक तरफ़ पक्की सड़क थी, जो छावनी को जाती थी, दूसरा रास्ता पहाड़ी को जाता था। निदान बड़ी कठिनाई से उक्त साहब ने ३८ नं० की रेजिमेंट को रास्ते पर अधिकार करने और उसे घेरने को भेजा। इनका अभि- प्राय यह था कि कप्तान डी० टेस्टर साहब की तोपों पर क़ब्ज़ा कर लें।

उपर्युक्त कप्तान हर चंद हिकमत अमली से यह चाहते थे कि इनकी तोपों के निकट सिपाही एकत्रित न हों, किंतु फिर भी चार-पाँच सिपाही गोलंदाज़ों के आस-पास घूमते रहे।

क़रीब १२ बजे दिन के पहाड़ी पर का बुर्ज अँगरेज़ों, मेमों और दूसरे ईसाइयों से भर गया, और इतना कोलाहल हो रहा था कि किसी तरह का प्रबंध होना संभव न था। कोई मनुष्य किसी प्रकार की शिक्षा या आज्ञा न मानता था। इसी समय एक सार्जंट ने ख़बर दी कि उन्होंने एक बिगुलवाले से सुना है कि ३८ नं० के सैनिक कहते हैं कि अगर तोपों की एक आवाज़ भी हुई, तो ३८ नं० की रेजिमेंट के समस्त सिपाही फिर जायँगे, और अंगरेज़ों को कऱल कर डालेंगे।

शाम हो रही थी, और समय व्यतीत होता जाता था। शहर में चारो तरफ़ भाग-ही-आग दिखाई देती थी।