दूसरी कथा ६७ सायंकाल के निकट नगर में एक बड़े जोर की आवाज हुई । यह शब्द मेगजीन के उड़ने का था। सिपाहियों ने यह शब्द सुना, तो त्रिगड़कर बोले कि जरनैल, यह क्या बात है, जो हमारे आदमियों को इस तरह मारा जाता है। कप्तान डी० टेस्टर साहब ने फिर कश्मीरी दरवाजे की तोपों को वापस लाने का हुक्म दिया । थोड़ी देर बाद फिर हुक्म हुआ कि मेजर एवट साहव ७४ नं० की रेजिमेंट को वापस लावें । यद्यपि थोड़ी देर बाद दोनो तो बड़े रास्ते पर नज़र थाई, गोया छावनी की तरफ जा रही थीं। कप्तान डी. टेस्टर साहब ने यह देखकर बिगुल बजाया कि वह आकर पहाड़ी पर इनके साथ शामिल हों। मगर वह न फिरे, तब कप्तान साहब समझे कि शायद उन्होंने विगुल की आवाज़ नहीं सुनी। इतनी देर में तो ३८ नं. की पन्टन की एक टुकड़ी के करीब जा पहुंचीं। और, उनके पहुँचते ही बंदूकों के चलने को आवाज आने लगी, और तोपें शहर की तरफ मुड़ती नजर आई । कप्तान साहब यह देखते ही फौरन् घोड़े पर सवार होकर तोपों की तरफ गए कि इनको वापस ले आवें। जब वह पास पहुंचे, तो हुक्म दिया कि दाहनी तरफ से होकर जल्दी हमारे पास आ जाओ। मगर जब मेजर साहब निकट पहुंचे, तो बहुत-से सिपाहियों ने बंदूकें उनकी तरफ की और ६ फायर कर दिए, जिनमें से तीन तो खाली गए, और तीन गोलियाँ घोड़े के लगीं। मगर उसमें इतनी ताकत बाकी थी कि साहब को
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