दूसरी कथा हैं, आप भी उनके साथ चले जाइए। अत्यंत करुणाई स्वर से रोकने के लिये इन्होंने चेष्टा की, पर वह शायद इस खयाल से नहीं रहे कि विद्रोही धोका देने की नियत से न ठहराते हों। अनंतर कप्तान हाकी साहब घोड़े पर आगे की ओर सवार हुए, और मेजर साहव को अपने पीछे सवार करके ले चले, और इन्हें दोनो तोपों तक पहुंचा दिया, जो कर्नाल जा रही थीं। पहिए पर बैठकर मेजर साहब ४ मील तक गए, मगर आगे न जा सके, क्योंकि ड्राइवरों ने जाने से इनकार कर दिया, और दोनो अँगरेजों को रास्ते में ही उतार दिया। सौभाग्य से कप्तान डग्लस साहब गाड़ी पर सवार मा उपस्थित हुए, और दोनो साहबों को अपने साथ बिठलाकर रवाना हो गए। देहली से जितनी गाड़ियाँ और बग्घियों चोरी-छिपे जान बचाकर भाग निकली थी, जिनमें बहुत-से अँगरेज-अफसर और उनके बाल-बच्चे थे, सब करनाल पहुंच गई। रास्ते में सिर्फ एक जगह देहली से लगभग ४० मील के फासले पर ठहरे थे। चूँ कि यहां डाक-वॅगला था, इसलिये खाना खाने के विचार से उतर पड़े थे । अंततः ये लोग सकुशल करनाल पहुँच गए, कितु कर्नल न्यूट और उनके साथ भगे हुए लोग बेचारे अवश्य मैदानों में भटक रहे थे। अंत में तीसरा रिसाला लेफ्टिनेंट गफ और लेफ्टिनेंट मेकंजी की अधीनता में इधर श्रा निकला, और इसने इन्हें रक्षा में ले लिया । इस दल में जो भटक रहा या-कर्नल न्यूट लेफ्टिनेंट प्रोक्टर, मेकर ३८ रेजिमेंट के और
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