७२ गदर के पत्र बंद कर दी थीं। अब वह खजाने लूटने की गरज से रवाना हो गए थे। मगर चलते-चलते जितनी तो थी, सबका मुँह इन गरीबों की तरफ करके सर कर दिया, मगर ईश्वर की कृपा से किसी को नुकसान नहीं पहुँचा, यद्यपि सिर्फ चालोस गज़ का फासला था। जब इन गरीबों को दम लेने की फुरसत मिली, तो सब खंदक में उतरकर और पार जाकर मटकल्फ साहब की कोठी में पहुंचे। वहाँ सौभाग्य से खाना तैयार था, बेचारे दिन-भर की भूख से व्याकुल थे, बैठकर खाना खाया। यद्यपि पेट भरकर न मिल सका, तो भी दूसरे ओहदेदारों से अच्छे रहे, जिनको सुबह से कछ न मिला था, और न फिर कभी मिलने की संभावना थी। मेजर एबट साहब शाम के करीब अपने रेजिमेंट के काटर में गए । वहाँ इनके सिपाहियों ने सम्मति कर यह निश्चित किया कि साहब यहाँ से अन्य स्थान में चले जाय, तो अत्युत्तम हो; और अत्यंत विनीत भाव से कहा कि आप यहाँ से चले जायें, क्योंकि यदि ३८ नं० की रेजिमेंट के सिपाहियों ने सुन लिया या देख लिया कि आप यहाँ छिपे हुए हैं, तो वे श्रापको कत्ल कर डालेंगे, और हमसे कुछ न हो सकेगा, हम आपको न बचा सकेंगे। यह कहकर कुछ सिपाही घोड़ा लेने के वास्ते छावनी गए । इस बीच में बहुत-सी गाड़ियाँ कर्नाल की तरफ़ जाती और भागती हुई नजर आई । यह देखकर सिपाहियों ने कहा कि देखो, बहुत-से ऑफिसर, मेमें और साहबान कर्नाल जा रहे
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