७६ गदर के पन्न वह बंद कर दिया गया है या नहीं। अस्तु | तमाम दरवाजे खुले हुए थे, और विद्रोही बड़ी प्रसन्नता से किले के दरवाजों में घुस रहे थे, और शाही मकानों तक पहुंच गए थे। जब लेफ्टिनेंट ड्यूली साहब वापस आए, तो उन्होंने मेगज़ीन के दरवाजे बंद कराकर तेरो लगवा दिए, और दरवाजे के भीतर दो तो ६ पन्नी की दुचंद गरीब भरवाकर एक्टिग सब कंडक्टर साहब और सार्जंट स्टुअर्ट साहब की अधीनता में रखवा दी गई। और, इन लोगों को बत्तियाँ देकर हुक्म दिया गया कि अगर विद्रोही दरवाजे के भीतर घुसें, तो दोनो तो सर कर दी जायें। मेगजीन का बड़ा दरवाजा भी इसी तरह दो तोपों से मजबूत कर दिया गया, और दरवाजे के अंदर गोखरू बिछा दिए गए। दूरदर्शिता और रक्षा के विचार से और दो तो इस तरह रख दी गई कि इनका गोला दरवाजे और बुर्ज तक पहुँचता था। इसके सिवा दरवाजों और सामान के दफ्तर के बीच रास्ता था। इन दोनो रास्तों पर ३-३ ६ पन्नी और २४ पन्नो का गुब्बारा इस तरस गाड़ दिया कि जिधर चाहें घुमाकर आस-पास के मकानों की रक्षा कर सकें । जब गुब्बारा और तोपें लगा दी गईं, तो इन सबमें दूने गरीब छर्रे भरवा दिए गए । अभिप्राय यह कि जहाँ तक संभव था, रक्षा का पूरा-. पूरा प्रबंध करके हिंदोस्तानी अमले को हथियार बांटे जाने लगे। किंतु उन लोगों ने बिल्कुल नाराजी से लिए, पर किसी प्रकार की घबराहट उनके चेहरों पर नहीं पाई जाती थी।
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