दूसरी कथा इसके बाद कंडक्टर एकलो साहब और सार्जंट स्टुअर्ट ने एक शितावा लगाया । इनको यह हुक्म था कि जब लेफ्टिनेंट के हुक्म से कंडक्टर युकली साहब अपनी टोपी सिर से उठावें, उसी समय शितावे में आग दे दे । निदान, साहब ने यह शितावा उड़ाया, कितु उस समय जब कि एक-एक गोला गुब्बारे का चल चुका था। इस बीच में किले से गारद आया, और मेगजीन पर शाह-देहली के नाम से अधिकार करना चाहा । इसका कुछ जवाब इधर से न दिया गया। इसके बाद मेगजोन के गारद के सूबेदार लेफ्टिनेंट ड्यूपुली साहब को इत्तिला दी गई कि शाह-देहली ने विद्राहियों को कहला भेजा है कि हम जीने भेजते हैं, जिनसे तुम लोग मेगजीन की दीवारों पर चढ़ जाओ। निदान, थोड़ी देर में जीना आ गया, और उसको लगाकर तमाम हिंदोस्तानी अमला दीवारों पर चढ़कर बाहर उतर गया । अनंत विद्रोही घुस आए । हमारे पास जब तक गोला-बारूद रहा, खूब मुकाबला करते रहे । फलतः विद्रोहियों की बहुत हानि हुई, पर वे बहुत अधिक थे, और रंजक के तोड़दान हिंदोस्तानी सिपाही विद्रोहियों में से पहले छिपाकर रख गए थे, इसलिये विवश हो मेगजीन उड़ा देना पड़ा। हिंदोस्तानी अमले में से रहीमबख्श-नामक एक व्यक्ति विद्रोहियों से मिला हुआ था। वह मेगजीन के दरवाजों का दरबान था । यह आदमी बाहर विद्रोहियों को भीतर का हाल
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