- तुम जाकर पूछो कि तोपों के श्राने में क्यों इतनी गदर के पत्र पता न था । विवश होकर मैने लेफ्टिनेंट वाई मार्ट साहब से कहा कि देर हुई है। और, मैं अपनी कंपनी लेकर शहर की ओर जाता हूँ, जिससे समय नष्ट न हो । लेफ्टिनेंट वाई मार्ट जब पहुँचे, तो बाहर पा रही थीं। और, मेरे पास उस वक्त पहुंची, जब मैं आधे से ज्यादा रास्ता खतम कर चुका था। जब मैं गारद से १०० गज के करीब पहुंचा, तो कप्तान वेल मैन नं०७४ रेजिमेंट के मेरे पास आए, और कहा कि जल्दी चलो, क्योंकि विद्रोही वहाँ पहुँच गए हैं। और, उन अभागों ने ७४ नं० की रेजिमेंट के तमाम अफसरों को मार डाला था। यह सुनकर मैंने आज्ञा दो कि दोनो तोपे और सब बदूकें भर ली जायें। इस बीच में मैंने देखा कि कर्नल साहब जखमी और चूर-चूर मेजर साहब की मदद से एक पालकी पर सवार चले श्रा रहे हैं । चूँ कि मेरी दोनो कंपनियों ने बंदूकें भर ली थीं, इसलिये मैं इनको लेकर विद्रोहियों की तलाश में निकला, और गारद तक पाया, पर उस समय वहाँ कोई विद्रोही न था। और,न५४ नं० रेजिमेंट की आठवीं कंपनी का कोई सिपाही वहाँ मौजूद था। यह हाल देखकर मैंने दोनो तोपें शहर के दरवाजे पर लगा दी, और इधर-उधर पहरे लगा दिए। इस जगह मैं यह कह देना आवश्यक समझता हूँ कि कप्तान विलसन साहब ने मुझसे कहा था कि जो गारद पहरे में था, जिसमें ५० सिपाही ३८० की रेजिमेंट के थे।६ गज़ के फासले पर .