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पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/९३

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८४ गदर के पत्र थे। यह हाल सुनकर साहब भागने का विचार करने लगे। उस समय आदमियों की भीड़-भाड़, गाड़ी, बग्घी और पालको गाड़ियों की अधिकता तथा लोगों को घबराहट देखने योग्य थी। ये सब सवारियाँ कर्नाल की ओर चली। किंतु जब उस स्थान पर पहुँची, जहाँ से एक मार्ग मेरठ की ओर जाता था, तो कुछ सवारियाँ मेरठ की तरफ चली गई। मुझे इससे पहले यह कह देना आवश्यक है कि लगभग ११ बजे ५४ नं० रेजिमेंट की लाइट कंपनी का एक सिपाही मेरे पास आया, और उसने कहा कि मुझे रेजिमेंटवालों ने इस वास्ते आपके पास भेजा है कि आप उनको जहाँ जाने का हुक्म दें, ये वहाँ जायें । मैं यह सुनकर आश्चर्य में पड़ा, और मैंने पूछा कि रेजिमेंट कहाँ है ? उसने कहा, सब्जी- मंडी में है । मैंने उससे पूछा, रेजिमेंट वहाँ किसलिये और क्योंकर गई ? उसने जवाब दिया, जिस समय विद्रोहियों ने अफसरों पर आक्रमण किया था, तो तमाम सिपाही तितर- बितर होकर भाग गए, और अब तमाम शहर में फिर-फिराकर सब्जीमंडी में एकत्रित हुए हैं। यह सुनकर मैंने आज्ञा दी कि सब मेरे पास चले श्रावें। निदान, वह गया, और सब सिपाही आज्ञानुसार मय निशान-झंडे के उपस्थित हो गए। इसके बाद हवलदार मेजर ने आकर कहा कि तुम लोग तीसरे रिसाले के सवारों के साथ थे, और उन लोगों को सम्मिलित होने को उत्तेजित करते थे, परंतु सिपाहियों ने इसे स्वीकार