दर गदर के पत्र महाजन सिपाहियों को लूटने लगे। यहां तक लूटा कि सोने की अशफ्रियों की जगह पीतल की अशर्फियाँ बेचीं। जिस रेजिमेंट के हाथ कुछ लूट नहीं लगी, वह रुपएवाले सिपाहियों पर ईर्षा करते थे, और चूँ कि मालदार सिपाही लड़ने के स्थानों में न जाते थे, इस बहाने से गरीब सिपाही इन्हें बहुत सख्त बातें कहते थे, बल्कि मैंने सुना कि धनवान् और गरीब सिपाहियों में लड़ाई होनेवाली है। एक रेजिमेंट अलीगढ़ से, १५० सवार मैनपुरी से, थोड़े-से निरन सिपाही घागरे से, एक रेजिमेंट और दो सवार हाँसी हिसार से, थोड़े-से निरस्त सिपाही अंबाला से,२०० सवार और दो कंपनी मथुरा से, छठा लाइट रिसाला तथा दो रेजि- मेंट जालंधर से, दो रेजिमेंट और तोपखाना नसीराबाद से मेरे सामने देहली से आए, और विद्रोहियों के साथ मिल गए। मुरादनगर, रोहतक, अलीगढ़, हाँसी, मथुरा, गढ़ी, हरसरू, तरसीली, इन स्थानों के सरकारी खजानों को विद्रोहियों ने लूट लिया, और शाही खजाने में दाखिल कर दिया । बादशाह की तरफ से प्रत्येक पैदल को चार थाना और प्रत्येक सवार को १) प्रतिदिन मिलता था । मुझे यह मालूम नहीं कि सरकारी खजानों से कितना रुपया आया, कितु १७ जून को शाही खजाने में १ लाख १६ हजार रुपया था। शाहजादे शाही फौज के अफसर बनाए गए थे । मुझे इन ऐश के पुतलों पर दया आती थी। जब कभी इन बेचारों को
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