पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/९६

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। दूसरी कथा विद्रोहियों ने नगरवालों का एक घोड़ा भी नहीं छोड़ा, सब छान ले गए । वहुधा दूकानदारों को केवल इस अपराध पर मार डाला कि वे ठीक दाम माँगते थे। बड़े-बूदों से चदजवानी की, यमुना के पुल पर जो गारद था, उसने हरएक मुसाफ़िर लूट लिया । जिस रोज़ से नगर में मैं भाया और जब तक रहा, मैंने कभी पूरा बाजार खुला नहीं देखा । केवल दो-चार वनिए बकालों की दूकानें, मामूली सामान की, खुला करती थों। नगरवासी और दूकानदार सभी शोक कर रहे थे। पेशावरों झी दशा काळे करने तक पहुंच गई थी। विधवाएँ मकानों में वैठी रोया करती थीं। प्रातःकाल से संध्या तक विद्रोहियों को गालियाँ दिया करती थी। अँगरेजों के नासी और प्रसिद्ध कर्मचारी घर से नहीं निकलते थे। प्रतिदिन एक नया कोतवाल नियत होता था। विद्रोहियों को जहाँ नकद रुपया दिखाई पड़ता, तत्काल लूट लेते थे। यह सब रुपया अभी तक सिपाहियों के अधिकार में था। और खजाने शाही में एक पैसा भी दाखिल नहीं किया गया था। किसी-किसी रेजिमेंट के पास इतना रुपया जमा हो गया था कि वह बड़ी कठिनाई से चल सकते थे। इसलिये बोझ के कारण उन्होंने रुपयों की मुहरें बदलवा ली। महाजनों ने मुहर का भाव इतना बढ़ा दिया था कि जो मुहर १६) के दर की थी, उसके २४०-२५) कर दिए । जिस तरह पहले सिपाहियों ने महाजनों को लूटा था, उसी तरह अब