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नाच-तमाशे, जिनकी कल्पना का गला उन्होंने घोंट दिया था, बृहद् रूप धारण करके सामने आ गये। बँधा हुआ घोड़ा थान से खुल गया, उसे कौन रोक सकता है। धूमधाम से विवाह करने की उन गयी। पहले जोड़े-गहने को उन्होंने गौण समझ रखा था, अब वही सबसे मुख्य हो गया। ऐसा चढ़ाव हो कि मड़वेवाले देखकर फड़क उठें। सबकी आँखें खुल जायें। कोई तीन हजार का सामान बनवा डाला। सराफ़ को एक हजार के लिए एक सप्ताह का वादा हुआ तो उसने कोई आपत्ति न की। सोचा दो हजार सीधे हुए जाते हैं, पांच-सात सौ रुपये रह जायेंगे, वह कहां जाते हैं। व्यापारी की लागत निकल आती है, तो नफे को तत्काल पाने के लिए आग्रह नहीं करता। फिर भी चन्द्रहार की कसर रह गयी। जड़ाऊ चन्द्रहार एक हजार से नीचे अच्छा नहीं मिल सकता था। दयानाथ का जी तो लहराया कि लगे हाथ उसे भी ले लो, किसी को नाक सिकोड़ने की जगह तो न रहेगी, पर जागेश्वरी इस पर राजी न हुई।

बाजी पलट चुकी थी!

दयानाथ ने गर्म होकर कहा--तुम्हें क्या, तुम तो घर में बैठी रहोगी। मौत मेरी होगी, जब उधर के लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगेंगे।

जागेश्वरी--दोगे कहां से, कुछ सोचा है?

दयानाथ--कम-से-कम एक हजार वहां मिल जायेंगे।

जागेश्वरी--खून मुँह लग गया क्या?

दयानाथ ने शरमाकर कहा--नहीं-नहीं मगर आखिर वहां भी तो कुछ मिलेगा?

जागेश्वरी--वहां मिलेगा तो वहां खर्च भी होगा। नाम जोड़े गहने से नहीं होता, दान-दक्षिणा से होता है।

इस तरह चन्द्रहार का प्रस्ताव रद्द हो गया।

मगर दयानाथ दिखाबे और नुमाइश को चाहे अनावश्यक समझे, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था। बारात ऐसे धूमधाम से जानी चाहिए कि गांव भर में शोर मच जाय। पहले दूल्हे के लिए पालकी का विचार था। रमानाथ ने मोटर पर जोर दिया। उसके मित्रों ने इसका अनुमोदन किया, प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। दयानाथ एकान्तप्रिय जीव थे,

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