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देवीदीन ने सिर पीटकर कहा——पुलिसवालों की बात का कोई भरोसा नहीं। कहा गया कि एक घंटे में रुपये लेकर आता हूँ, मगर इतना भी सबर न हुआ। सरकार से पाँच ही सौ तो मिलेंगे। मैं छ: सौ देने को तैयार हूँ। हाँ, सरकार में कारगुजारी हो जायगी और क्या। वहीं से उन्हें परागराज' भेज देंगे। मुझसे भेंट भी न होगी। बुढ़िया रो-रोकर मर जायगी। यह कहता हुआ देवीदीन वहीं जमीन पर बैठ गया।

कांसटेबल——तो यहाँ कब तक बैठे रहोगे ?

देवीदीन ने मानो कोड़े को चोट से आहत होकर कहा——अब दारोगाजी से दो-दो बातें करके ही जाऊँगा। चाहे जेहल हो जाना पड़े पर फटकारूंगा जरूर, बुरी तरह फटकारूँगा। आखिर उनके भी तो बाल-बच्चे होंगे। क्या भगवान को जरा भी नहीं डरते ? तुमने बाबूजी को जाती बार देखा था ? बहुत रंजीदा थे ?

कांसटेबल——रंजीद तो नहीं थे, खासी तरह से हंस रहे थे ! दोनों जने मोटर में बैठकर गये है।

देवीदीन ने अविश्वास के भाव कहा——हंस क्या रहे होंगे बेचारे ! मुँह से चाहे हँस लें, दिल तो रोता ही होगा।

देवोदीन को यहाँ बैठे एक घण्टा भी न हुआ था कि सहला जग्गी या खड़ी हुई। देवीदीन को द्वार पर बैठे देखकर बोली—— तुम यहाँ क्या करने लगे ? या कहाँ हैं ?

देवीदीन ने मर्माहत होकर कहा——भैया को ले गये सुपरिटेंडेंट के पास। न जाने भेंट होती है कि ऊपर-ही-ऊपर परागराज भेज दिये जाते हैं।

जग्गो——दारोगाजी भी बड़े वह हूँ ! कहाँ तो कहा कि इतना लेंगे, कहाँ लेकर चल दिये।

देवी——इसीलिए तो बेश हूँ कि आई तो दो-दो बातें कर लू।

जग्गो——हाँ, फटकारना जरूर। जो अपनी बात का नहीं, वह अपने बाप का क्या होगा ? मैं तो खरी कहूँ। मेरा क्या कर लेंगे ?

देवी——दुकान पर कौन है ?

जग्गो——बन्द कर आयी हूँ। अभी बेचारे ने कुछ खाया भी नहीं। सबेरे

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