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ऐसी दशा में मेरा कर्तव्य इसके सिवा कुछ और हो ही नहीं सकता था जो मैंने किया।

अदालत ने सरकारी वकील से पूछा --क्या प्रयाग से इस मुआमले की कोई रिपोर्ट मांँगी गयी थी! वकील ने कहा--जी हाँ; मगर हमारा उस विषय पर कोई विवाद नहीं है।

सफ़ाई के वकील ने कहा-इससे यह तो सिद्ध हो जाता है, कि मुलजिम डाके में शरीक नहीं था। अब केवल यह बात रह जाती है कि वह मुखबिर क्यों बना?

बादी वकील-स्वार्थ सिद्धि के सिवा और क्या हो सकता है। सफ़ाई का वकील-मेरा कथन है, उसे धोखा दिया गया और जब उसे मालूम हो गया कि जिस भय से उसने पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना स्वीकार किया था, वह उनका भ्रम था, तो उसे धमकियांँ दी गयीं।

अब सफाई का कोई गवाह न था। सरकारी वकील ने बहस शुरू की - योर ऑनर, आज आपके सम्मुख एक ऐसा अभियोग उपस्थित हुआ है जैसा सौभाग्य से बहुत कम हुआ करता है। आपको जनकपुर की डकैती का हाल मालूम है। जनकपुर के आस-पास कई गाँव में लगातार डाके पड़े और पुलिस डकैतों की खोज करने लगी। महीनों पुलिस कर्मचारी अपनी जान हथेली पर लिये, डकैतों को ढूंढ़ निकालने की कोशिश करते रहे। आखिर उनकी मेहनत सफल हुई और डाकुओं की खबर मिली। यह लोग एक घर के अन्दर बैठे पाये गये। पुलिस ने एक बार में सबों को पकड़ लिया, लेकिन आप जानते है, ऐसे मामलों में अदालतों के लिए सबूत पहुँचाना कितना मुश्किल होता है। जनता इन लोगों से कितना डरती है, प्राणों के भय से शहादत देने को तैयार नहीं होती। यहाँ तक कि जिनके घरों में डाके पड़े थे, वे भी शहादत देने का अवसर पाया तो साफ़ निकल गये।

महानुभावों, पुलिस इसी उलझन में पड़ी हुई थी कि एक युवक आता है और इन डाकुओं का सरगना होने का दावा करता है। वह उन डकैतियों का ऐसा सजीव, ऐसा प्रमाण पूर्ण वर्णन करता है, कि पुलिस धोखे में आ जाती है। पुलिस ऐसे अवसर पर ऐसा आदमी पाकर इसको दैवी मदद

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