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समझती है। यह युवक इलाहाबाद से भाग आया था और यहाँ भूखों मरता था। अपने भाग्य निर्माण का सुअवसर पाकर उसने उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करने का निश्चय कर लिया। मुखबिर बनकर सजा का तो उसे कोई भय था ही नहीं, पुलिस की सिफारिश से कोई अच्छी नौकरी पा जाने का विश्वास था। पुलिस ने उसका खूब आदर-सत्कार लिया और उसे अपना मुखबिर बना लिया। बहुत सम्भव था, कि कोई शहादत न पाकर पुलिस इन मुलजिमों को छोड़ देती और उनपर कोई मुकदमा नहीं चलाती पर इस युवक के चकमे में आकर उसने अभियोग चलाने का निश्चय कर लिया। उसमें चाहे और कोई गुण हो या न हो, उसकी रचना शक्ति की प्रखरता से इनकार नहीं किया जा सकता। उसने डकैतियों का ऐसा यथार्थ वर्णन किया, कि जंजीर की एक कड़ी भी कहीं से गायब न थी। अंकुर से फल निकलने तक की सारी बातों की उसने कल्पना कर ली थी। पुलिस ने मुकदमा चला दिया।

पर ऐसा मालूम होता है, कि इस बीच में उसे सौभाग्य-निर्माण का इससे भी अच्छा अवसर मिल गया। बहुत सम्भव है, सरकार की विरोधिनी संस्थाओं ने उसे प्रलोभन दिये हों और उन प्रलोभनों ने स्वार्थ-सिद्धि का यह नया रास्ता सुझा दिया हो, जहाँ धन के साथ यश भी था, वाह-वाही भी थी; देशभक्ति का गौरव भी था। वह अपने स्वार्थ के लिये सब कुछ कर सकता है ! वह स्वार्थ के लिए किसी के गले पर छुरी चला सकता है और साधु-वेश भी धारण कर सकता है। यही उसके जीवन का लक्ष्य है। हम खुश हैं, कि उसकी सद्बुद्धि ने अन्त में उस पर विजय पायी, चाहे उसका हेतु कुछ भी क्यों न हो। निरपराधियों को दण्ड देना पुलिस के लिए उतना ही आपत्तिजनक है, जितना अपराधियों को छोड़ देना। वह अपनी कारगुजारी दिखाने के लिए ही ऐसे मुकदमे नहीं चलाती। न गवर्नमेंट इतनी न्याय शून्य है, कि वह पुलिस के बहकावे में आकर सारहीन मुकदमे चलाती फिरे; लेकिन इस युवक को चकमेबाजियों से पुलिस की जो बदनामी हुई और सरकार के हजारों रुपये खर्च हो गये, इसका जिम्मेदार कौन है ? ऐसे आदमी को आदर्श दण्ड मिलना चाहिए, ताकि फिर किसी को ऐसी चकमेबाजी का साहस न हो। ऐसे मिथ्या का संसार रचनेवाले प्राणी को मुक्त रहकर समाज को ठगने का

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