पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/१६३

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गीतारहत्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । हैं वे मी देवता हैं । प्रत्येक मनुष्य स्वभावतः इन देवताओं के शुद्ध स्वरूप से परिचित रहता है । परन्तु यदि लोम, द्वैप, सत्सर आदि कारणों से वह इन देव- ताओं की प्रेरणा की परवा न करे, तो अब देवता क्या करें? यह बात सच है कि कई बार इन देवताओं में भी विरोध उत्पन्न होताता है, और तब कोई कार्य करते समय हमें इस बात का संदेह हो जाता है कि किस देवता की प्रेरणा को अधिक वलवती मान । इस संदेह का निर्णय करने के लिये न्याय, करुणा श्रादि देव. ताओं के अतिरिक किसी दूसरे की सलाह लेना आवश्यक जान पड़ता है । पल्नु ऐसे अवसर पर अध्यात्मविचार अथवा सुख-दुःष की न्यूनाधिकता के झगड़े में न पड़ कर, यदि हम अपने मनोदेव की गवाही लें, तो वह एकदम इस बात का निर्णय कर देता है कि इन दोनों में से कौन सा मार्ग श्रेयस्कर है। यही कारण है कि रक्तसब देवताओं में मनोदेव श्रेष्ठ है । 'मनोदेवता' शब्द में इच्छा, क्रोध, लोम आदि सभी मनोविकारों को शामिल नहीं करना चाहिये किन्तु इस शब्दसे मन की वह ईश्वरदत्त और स्वाभाविक शक्ति ही अमीष्ट है कि जिसकी सहायता से भले बुरे का निर्णय किया जाता है। इली शक्ति का एक वनामारीनाम 'सदसद्विवेक बुद्धि' है।याडे, किलीसंदेह-यस्त अवसर पर, मनुष्यस्वस्य अंतःकरण से और शांति केसाय विचार करें तो यह सदसद्विवेकबुद्धि कमीउसको घोखा नहीं देगी। इतना ही नहीं किंतु ऐसे मौन पर हम दूसरों से यही कहा करते हैं कि अपने मन से पूछ। इस बड़े देवता के पास एक सूची हमेशा मौजूद रहती है । उसने यह लिखा होता है कि किस सद्गुण को, किस समय, कितना महत्व दिया जाना चाहिये । यह मनोदेवता, समय समय पर, इसी सूची के अनुसार अपना निर्णय प्रगट दिया करता है। मान लीजिये कि किसी समय प्रात्म-ज्ञा और अहिंसा में विरोध उत्पन्न हुआ और यह शंका उपस्थित हुई, कि दुर्मिन के समय अभक्ष्य मनण करना चाहिय या नहीं ? तब इस संशय को दूर करने के लिये यदि हम शांत चित्त से इस भनौदेवता की मित्रत करें, तो उसका युही निर्णय प्रगट होगा कि अभक्ष्य मन्त्रण करो। इसी प्रकार यदि कमी स्वार्य और पराय अयवा परी- पकार के बीच विरोध हो जाय, तो उसका निर्णय भी इस मौदेवता को मना कर करना चाहिये । मनोदेवता के घर की, धर्म-अधर्म के न्यूनाधिक भाव की, यह सूची एक ग्रंथकार को शांतिपूर्वक विचार करने से उपलब्ध हुई है, जिसे उसने अपने ग्रंय नं प्रनाशित किया है। इस सूची में नन्नतायुक्त पूज्य भाव कोपहला इस सदसद्विवेक दादि को ही अंग्रेजी में Conscience कहते हैं; और आधिदैवत पक्ष Intuitionist school कहलाता है।

  • ग्रन्यज्ञार का नाम James Martinean (उन्म नार्टिनो) है। इसने यह

TÀ Types of Ethical Therry (VOL. 11.P. 266. 38 Ed. ) नानक य में दी है। मार्टिनों अपने पंथ को Idio-Pythological कहता है। परन्तु हम से आदिदेवपक्ष ही में शामिल करते है। .