पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रस्तावना। इसलिये हुई है कि वह इसकी विधि बतलावे कि मोक्षदृष्टि से संसार के कर्म ही किस प्रकार किये जायें; और तात्विक दृष्टि से इस बात का उपदेश करे कि संसार में मनुष्य मान का सचा कर्तव्य क्या है । अतः हमारी इतनी ही विनती है कि पूर्व अवस्था में ही-चढ़ती हुई उम्र में ही प्रत्येक मनुष्य गृहस्थाश्रम के अथवा संसार के इस प्राचीनशाखको जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी, समझे विना न रहे। पूना, अधिक वैशाख । संवत् १९७२ वि०॥ बाल गंगाधर तिलक। }