पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/२५४

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अध्यात्म। २१५ पीछे जानेवाले पदार्थ का रूप देख कर हम निश्चय करते हैं कि वह राजा' है। और, "फौज-लम्बन्धी पहले संस्कार को तथा 'राजा-सम्बन्धी इस नूतन संस्कार को एकत्र कर हम कहते हैं कि यह ' राजा को सवारी जा रही है। इसलिये कहना पड़ता है कि सृष्टि-ज्ञान केवल इन्द्रियों से प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाला जड़ पदार्थ नहीं है। किन्तु इन्द्रियों के द्वारा मन पर होनेवाले अनेक संस्कारों या परिणामों का जो एकीकरण' द्रष्टा आत्मा' किया करता है, उसी एकीकरण का फल ज्ञान है। इसी लिये भगवद्गीता में भी ज्ञान का लक्षण इस प्रकार कहा है- “अविभक्त विभा" अर्थात् ज्ञान वही है कि जिससे विभक्त या निरालेपन में अविभक्तता या एकता का बोध हो * (गी. 10. २०) । परन्तु इस विषय का यदि सूक्ष्म विचार किया जावे कि इन्द्रियों के द्वारा मन पर जो संस्कार प्रथस होते हैं वे किस वस्तु के है तो जाना पड़ेगा कि यद्यपि आँख, कान, नाक इत्यादि इन्द्रियों ले पदार्थ के रूप, शब्द, गंध यादि गुणों का ज्ञान हमें होता है तथापि जिल पदार्थ में ये वास गुण हैं उसके आन्तरिक स्वरूप के विषय में हमारी इन्द्रियाँ हमें कुछ भी नहीं बतला सकती। हम यह देखते हैं सही कि गीली मिट्टी' का घड़ा बनता है, परन्तु यह नहीं जान सकते कि जिसे हम गीली मिट्टी कहते हैं, उस पदार्थ का यथार्थ तात्विक स्वरूप क्या है। चिकनाई, गीलापन, मैला रंग या गोलाकार (रूप) इत्यादि गुण जब इन्द्रियों के द्वारा मन को पृथक् पृथक् मालूम हो जाते हैं तय उन सब संस्कारों का एकीकरण करके द्रष्टया आत्मा कहता है कि यह गीली मिट्टी है और प्रागे इसी द्रव्य की (फ्योंकि यह मानने के लिये कोई कारण नहीं, कि द्रव्य का तात्विक रूप बदल गया) गोल तथा पोली आकृति या रूप, ठन ठन आवाज़ और सूखापन इत्यादि गुण जब इन्द्रियों के द्वारा मन को मालूम हो जाते हैं तब आत्मा उनका एकीकरण करके उसे घड़ा' कहता है। सारांश, सारा भेद रूप या प्राकार ' में ही होता रहता है और जब इन्दी गुणों के संस्कारों को, जो मन पर दुआ करते हैं, 'द्रष्टा' प्रात्मा एकत्र कर लेता है, तब एक ही तात्त्विक पदार्थ को अनेक नाम प्राप्त हो जाते हैं । इसका सब से सरल उदाहरण समुद्र और तरङ्ग का, या सोना और अलक्षार का है। क्योंकि इन दोनों उदाहरणों में रम गाढ़ापन-पतलापन, वजन आदि गुण एक ही से रहते हैं और केवल रूप (आकार) तथा नाम यही दो गुण बदलते रहते हैं । इसी लिये चेदान्त में ये सरल उदाहरण इमेशा पाये जाते हैं। सोना तो एक पदार्थ है, परन्तु भिन्न भिन्न समय पर यदलनेवाले उसके आकारों के जो संस्कार, इन्द्रियों के द्वारा मन पर होते हैं उन्हे एकत्र करके 'दष्टा' उस सोने को ही, कि जो तात्विक दृष्टि से एक ही मूल पदार्थ है) कभी कड़ा, कभी अंगूठी या कभी 'पंचलड़ी, 'पहुँची'

  • Of. “Knowlodge is first produced by thò synthesis of

what is manifold." Kant's Critique of Pure Roason, p. 64. Max Muller's translation 2nd. Ed.