पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/२७

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... २८ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । साल्यों की तथा वेदान्तियों की मिन्न-भिन्न रीति-उनका नशा-वेदान्त अन्यों में वर्णित धूल पञ्चमहाभूतों की उत्पत्ति का क्रम- और फिर पञ्जीकरण से सारे यूज पदार्थ-उपनिषदों के निवृत्करण से उसकी तुलना -सजीव सृष्टि और लिजशरीर- वेदान्त में वर्णित निङ्गशरीर का सौर सांस्यगाव में वर्णित लिशरीर का भेद- बुद्धि के भाव और वेदान्त का कर्म-प्रलय-टत्पत्ति प्रलय-काल-इल्पयुगमान- ब्रह्मा का दिन-रात और उसकी सारी मायु-सृष्टि की उत्पत्ति के अन्य क्रम से विरोध और एकता। पृ.६४-६५ नयाँ प्रकरण-अध्यात्म । प्रकृति और पुरुष रूप द्वैत पर भानेप-दोनों से परे रहनेवाले का विचार करने की पद्धति-दोनों से परे का एक ही परमात्मा अथवा परमपुरप-प्रकृति (जगत्), पुरुप (जीव) और परमेवर, यह प्रयी-गीता में वर्णित परमेश्वर का स्वरूप-व्यक अथवा सगुण रूप और उसकी गौणता-सव्यक्त किन्नु माया से व्यक्त होनेवाला-अव्यक्त के ही तीन भेद-सगुण, निर्गुण और सगुण-निर्गुण- उपनिषदों के तत्लश वर्णन-उपनिपड़ों में उपासना के लिये घतलाई हुई विद्याएँ और प्रतीक-त्रिविध अव्यक रूप में निर्गुण ही श्रेष्ट है (पृष्ठ २०८)-क सिद्धान्तों की शास्त्रीय उपपत्ति-निर्गुण और सगुण के गहन अर्थ-अमृतत्व की स्वभाव- सिद्ध कल्पना-सृष्टिज्ञान से चार किसका होता है ?-ज्ञानक्रिया का वर्णन और नाम-रुप की व्याख्या -नाम-रूप का दृश्य और दस्तुतच - सत्य की व्याख्या- विनाशी होने से नाम-रूप प्रसत्य हैं और नित्य होने से वस्तुतत्व सत्य है -वस्तु तत्त्व ही अक्षरब्रह्म है और नाम-रूप माया है. -सत्य और मिच्या शब्दों का वेदान्तशास्त्रानुसार अर्थ-माधिभौतिक शास्त्रों की नाम-रूपात्मकता-(पृ. २२१)- विज्ञान-बाद वेदान्त को प्राह्य नहीं-माया-बाद की प्राचीनता नाम-रूप से माच्छादित नित्य यह का, और शारीर आत्मा का स्वरूप एक ही है-दोनों को चिद्रूप क्यों कहते हैं? -ब्रह्मास्मैक्य यानी यह ज्ञान कि जो पिण्ड में है, वहीं ब्रह्माण्ड में है -ब्रह्मानन्द-मैं-पन की मृत्यु -तुरीयावस्था अथवा निर्विकल्प समाधि - अमृतत्व-सीमा और मरण का मरण (पृ. २३४)-द्वैतवाद की उत्पत्ति गीता और उपनिषद दोनों अद्भुत वेदान्त का ही प्रतिपादन करते हैं-निर्गुण में सगुण माया की उत्पत्ति कैसे होती है-विवर्त-वाद और गुण-परिणाम-बाद-जगत जीव और परमेश्वर विषयक अध्यात्मशास्त्र का संक्षिप्त सिद्धान्त (पृ. २५३)- ब्रह्म का सत्यानृतत्व- तत्सत् और अन्य ब्रह्मनिर्देश-जीव परमेश्वर का 'अंश' कैसे है-परमेश्वर दिकाल से अमर्यादित है (पृ. २४७)-अध्यात्मशास्त्र का अन्तिम सिद्धान्त-देहन्द्रियों में मिदी हुई साम्यबुद्धि-मोक्षस्वरूप और सिदा. वस्था का वर्णन(पृ. २५०)-ऋग्वेद के नासदीय सूत का साप विवरण - पूर्वापर प्रकरण की समाति। पृ. १६६-२५६।