२५४ गीतारहस्य अपवा कर्मयोगशाल! तिरश्चीनो विततो रश्मिरपाम् ५. (यह) राम या किरण या धागा अथः स्विदासीदुपरि विदासीत् । इनमें आड़ा फैल गया; और यदि कहें रेतोधा आसन् महिमान आसन् कि यह नीचे था तो यह ऊपर मी था। स्वधा अवस्तात् प्रयानिः परस्ताता॥५॥ (इनमें से कुछ) रेतोषा अर्थात् बीज- प्रद हुए और (बढ़ कर) बड़े भी हुए। उन्हीं की वशक्ति इस मार रही और प्रयति अर्थात प्रभाव उस ओर (व्याप्त) हो रहा । को श्रद्धा वेद क इह प्र वोचत् ६. (सत् का)यह विसर्ग यानी पसारा कुत आजाता कृत इयं विसृष्टिः। किससे या कहाँ से आया यह अवांग देवा अस्य विसर्जनना- (.इससे अधिक ) प्र यानी विस्तार- म को वेद यत आबभूव ॥६॥ पूर्वक यहाँ कौन कहेगा ? इसे कान निश्च- चात्मक जानता है? देव भी इस (सन् मृष्टि के ) विसर्ग के पश्चात् हुए है। फिर वह जहाँ से हुई,उसे कौन जानगा? इयं विसृष्टिर्यत श्रावभूव (सत् का) यह विसर्ग मयांत फैलाव यदि चा दधे यदिवान। जहाँ से हुमा अयवा निर्मित किया गया यो अत्याध्यक्षःपरमे व्योमन् या नहीं किया गया-उसे परम आकाश सो अंग वेद यदि वा न वेद ॥७॥ में रहनेवाला इस सृष्टि का जो अध्यक्ष (हिरण्यगर्भ ) है, वही जानता होगा; या न भी जानता हो ! (कौन कह सके ?) सारे वेदान्तशाख का रहस्य यही है, कि नेत्रों को या सामान्यतः सब इन्द्रियों को गोचर होनेवाले विकारी और विनाशी नाम-रूपात्मक अनेक दृश्यों के फैदे में फंसे न रह कर ज्ञानदृष्टि से यह जानना चाहिये, कि इस श्य के पर कोई न कोई मुक और अमृत तत्व है । इस मक्खन के गोले को ही पाने के लिये उक्त सूक्त के ऋषि की बुद्धि एकदम दौड़ पड़ी है, इससे यह स्पष्ट देख पड़ता है कि उसका मन्तज्ञान कितना तीव्र था! मूलारम्म में अर्थात् सृष्टि के सारे पदायों के उत्पन्न होने के पहले जो कुछ था, वह सत् था या असद, मृत्यु या या अमर, आकाश पा-या जल, प्रकाश या या अंधकार? ऐसे अनेक प्रश्न करनेवालों के साथ वाद-विवाद न करते हुए, उक ऋपि सब के आगे दौड़ कर यह कहता है, कि सत् और असत्, मर्य और अमर, अंधकार और प्रकाश, आग्दादन करनेवाला और आच्छादित, सुख देनेवाला और उसका अनुभव करनेवाला, ऐसे द्वैत की परस्परसापेक्ष भापा दृश्य सृष्टि की उत्पत्ति के अनन्तर की है। अतएव सृष्टि में इन द्वन्द्वों के उत्पन्न होने के पूर्व अयांत जय एक और दूसरा' यह भेद ही नया तब, कौन किसे आच्छादित करता? इसलिये भास्म ही में इस सूक का ऋपि निर्भय हो कर यह कहता है, कि मूला. रम्म के एक द्रव्य को सत् या असत्, आकाश या जल, प्रकाश या अंधकार, अमृत
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