पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/३२

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गीतारहस्य के विषयों की अनुक्रमाणिका । मायावाद-उपनिषदों की अपेक्षा गीता की विशेषता-सांख्यशास्त्र और वेदान्त की एकवाक्यता-व्यक्तोपासना अथवा भक्तिमार्ग-परन्तु कर्मयोगमार्ग का प्रतिपादन ही सब में महत्वपूर्ण विशेषता है -गीता में इन्द्रियनिग्रह करने के लिये बतलाया गया योग, पाताल-योग और उपनिषद् । - भाग ३. गीता ओर मागसूत्रों की पूर्वा- परता-गीता में नमसूत्रों का स्पष्ट उल्लेख -प्रलसूत्री में स्मृति ' शब्द ले गीता का अनेक बार उलेख-दोनों ग्रयों के पूर्वापर का विचार महासूत्र या तो वर्त- मान गीता के समकालीन हैं या और भी पुराने, बाद के नहीं में गीता ब्रह्मसूत्रों के उल्लेख होने का एक प्रयल कारण !- भाग ४. भागवतधर्म पा उदय और गीता गीता का भकिमार्ग वेद न्त, सांख्य और योग को जिये हुए है-वेदान्त के मत गीता में पीछे से नही मिलाये गये हैं-वैदिक धर्म का अत्यन्त प्राचीन स्वरूप कर्मप्रधान ई - तदनन्तर ज्ञान का अर्थात वेदान्त, सांख्य और वैराग्य का प्रादुभीय हुआ- दोनों की एकवाक्यता प्राचीन काल में ही हो चुकी है-फिर भक्ति का प्रादुर्भाव-प्रतएव पूर्वोक्त मार्गों के साथ भक्ति की एकवाक्यता करने की पहले से झी आवश्यकता -यही भागवतधर्म की प्रतएव गीता की भी एष्टि -- गीता का ज्ञान. कम-समुशय उपनिषदों का है, परन्तु भक्ति का मेल प्राधिक ई-भागवतधर्म- विषयक प्राचीन ग्रन्थ, गीता भार नारायणीयोपाख्यान -श्रीकृष्ण का और सात्वत अथवा भागवतधर्म के उदय का काल एक ही ई-बुद्ध से प्रथम लगभग सात- पाठ सौ थर्थात ईसा से प्रथम पन्द्रह सौ वर्ष-ऐसा मानने का कारण -- मानने से होनेवाशी अनयस्था - भागवतधर्म का मूल स्वरूप नैकर्म्य-प्रधान था, फिर भक्ति-प्रधान हुआ प्योर अन्त में विशिष्टाद्वैत-प्रधान हो गया-मूल गीता ईसा से अपम कोई नौ सी वर्ष की है।-गाग ५. वर्तमान गीता का काल-पर्तमान महाभारत मौर वर्तमान गीता का समय एक ही है-इन में वर्तमान महाभारत भास के, अश्वघोप के, प्राधिनायन के, सिकन्दर के, और मेपादिगणना के पूर्व का है किन्तु युग के पश्चात का है -अतएव शक से प्रथम लगभग पाँच सौ वर्ष का है-वर्त- मान गीता फालिदास के, बाणभट्ट के, पुराणों और बौधायन के, एवं यौद्ध धर्म के महायान पन्य फे भी प्रथम की है अर्थात् शक से प्रथम पाँच सौ वर्ष की है।- भाग ६. गीता और बौद्ध अन्य -- गीता के स्थितप्रज्ञ के और धौद्ध भईत के वर्णन में समता-बौद्ध धर्म का स्वरूप शीर उससे पहले के ब्रामणधर्म से उसकी उत्पत्ति-उपनिषदों के आत्म-वाद को छोड़ कर केवल निवृत्ति प्रधान पाचार को ही बुद्ध ने अङ्गीकार किया-बौद्धमतानुसार इस आचार के दृश्य कारण, अथवा चार आर्य सत्य - बौद्ध गास्थ्यधर्म और वैदिक सातधर्म में समता-ये सब विचार मूल वैदिक धर्म के ही हैं -तथापि महाभारत और गीताविषयक पृथक् विचार करने का प्रयोगन - मूल अनात्मवादी और निवृत्तिप्रधान धर्म से ही मागे चल कर भक्ति-प्रधान चौद्धधर्म का प्रत्पश होना असम्भव है-महायान पन्थ की उत्पत्ति, यह मानने के लिये प्रमाण Eि उसका, प्रवृत्तिप्रधान मन्ति- धर्म गीता से ही ले लिया गया है-इससे निर्जीत होनेवाला गीता का समय । , गी. र.ध.