पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/३४३

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३०४ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । अपने ग्रन्थों में, कर्म छोड़नेवालों पर ऐसे तीन कटाक्ष किये हैं कि, वह कर्मसंन्यास- पक्षवालों के लिये मूर्स-शिरोमणि शब्द से अधिक सौम्य शब्द का उपयोग कर ही नहीं सकता है। यूरोप में अरिस्टाटल से ले कर शव तक जिस प्रकार इस सम्बन्ध में दो पक्ष हैं, उसी प्रकार भारतीय वैदिक धर्म में भी प्राचीन काल से लेकर अबतक इस सम्बन्ध के दो सम्प्रदाय एक से चले आ रहे हैं (ममा. शां. ३४६.७)। इनमें से एक को संन्यास- मार्ग, सांख्य-निष्टा या केवल सांख्य (अथवा ज्ञान में ही नित्य निमग्न रहने के कारण ज्ञान-निष्टा भी) कहते हैं और दूसरे को कर्मयोग, अथवा संक्षेप में केवल योग या कर्म- निष्ठा कहते हैं। म तीसरे प्रकरण में ही कह आये हैं, कि यहाँ 'सांख्य' और 'योग। शब्दों से तात्पर्य क्रमशः कापिल-सांव्य और पाताल योग से नहीं है।परन्नुसंन्यास' शब्द भी कुछ सन्दिग्ध है, इसलिये उसके अर्य का कुछ अधिक विवरण करना यही आवश्यक है। संन्यास 'शब्द से सिर्फ 'विवाह न करना' और यदि किया हो तो चाल-बच्चों को छोड़ भगवे कपड़े रंग लेना' अथवा 'केवल चौया आश्रम ग्रहण करना' इतना ही अर्थ यहाँ विवक्षित महीं है। क्योंकि विवाह न करने पर भी भीष्म पितामह मरते दम तक राज्यकार्यों के उद्योग में लगे रहे और श्रीमच्छंकराचार्य ने ब्रह्मचर्य से कदम चौया आश्रम प्रहण कर, या महाराष्ट्र देश में श्रीसमर्थ रामदास ने मृत्युपर्यंत ब्रह्मचारी गोस्वामी रह कर, ज्ञान फैला करके संसार के उद्धारार्य कर्म किये हैं । यहाँ पर मुख्य प्रश्न यही है, कि ज्ञानोत्तर संसार के व्यवहार केवल कर्तव्य समझ कर लोक-कल्याण के लिये, किये जायें अथवा मिय्या समझ कर एकदम छोड़ दिये जावें? इन व्यवहारों या कमों का करनेवाला कर्मयोगी कहलाता है, फिर चाहे वह व्याहा हो या वारा, भगवे कपड़े पहने या सफ़ेद । ही, यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे काम करने के लिये विवाह न करना, भगवे कपड़े पहनना अथवा वन्नी से बाहर विरक हो कर रहना ही कभी कभी विशेष सुभीत का होता । क्योंकि फिर कुटुम्ब के भरण-पोषण की झंझट अपने पीछे न रहने के कारण, अपना सारा समय और परिश्रम लोक-कार्यो • कर्मयोग और कर्मत्याग (सांख्य या सन्चास ) इन्ही दो मागों को सली ने अपने Pessimism नामक ग्रन्थ में कम से Optimism और Passimism नाम दिये है, पर हमारी राय में यह नाम ठीक नहीं। Pessimism शब्द का अर्थ " उदास, निराशावादी या रोतीम्रत" होता है । परन्तु संसार को अनित्य समझ कर उसे छोड़ देनेवाले संन्यासी आनन्दीरहते हैं और वे लोग मार आनन्द ने ही छोड़ते हैं। इसलिये हमागे राय में, उनको Pessimist कहना ठीक नहीं। इसके बदले कर्मयोग को Evergism और सांख्य या संन्यास मार्ग को Quietism करना अधिक प्रशस्त होगा । वैदिक धर्म के अनुसार दोनों मार्गों में ब्रह्मशन एक होता है, इसलिये दोनों का आनन्द और शान्ति भी एक ही नी है । हम ऐसा भेद नहीं करते कि एक मार्ग मानन्दमय है और दूसरा दुःश्नमय है अथवा एक आशा. वादी है और दुमरा निराशावादी ।