संन्यास और कर्मयोग । ३४१ मागवत सौर मात, दोनों पन्य उपास्य-भेद के कारण पहल उत्पन्न हुए थे पर हमारे मत में यह समझ ठीक नहीं। क्योंकि इन दोनों मागों के उपास्य मिस भने ही हों, किन्तु उनका अध्यात्मज्ञान एक दी है । और अध्यात्म-ज्ञान की नींव एक ही होने से यह सम्भव नहीं, कि उदात्त ज्ञान में पारस प्राचीन ज्ञानी पुरुष केपन उपास्य के भेद को ले कर झगड़ते रहें। इसी कारगा से भगवद्गीता (६. १४) एवं शिवगीता (१२.४) दोनों प्रन्यों में कहा है कि भनि. किसी की करो, पहुंचेगी यह एक ही परमेश्वर को । महाभारत के नारायणीय धर्म में तो इन दोनों देवताओं का अभेद यो यतलाया गया है, कि नारायगा और रब एक ही हैं, जो रद के भात है वे नारायण के भक्त हैं और जो रद के द्वैपी है, ये नारायगा के भी द्वेषी है (मभा. शां.३४१. २०-२६और ३४२. १२६ देखो)। हमारा यह कहना नहीं है, कि प्राचीन काल में शैव सार वैपायों का भेद ही न था, पर हमारे कपन का तात्पर्य यह है कि ये दोनो-सात सौर भागवत • पन्ध शिव और विष्णु फे उपास्य भेद-भाव के कारण भित्र भिस नहीं हुए हैं। ज्ञानोतर निति या प्रवृत्ति, कर्म घोड़े या नहीं, केवल इसी मय के विषय में मत-भेद होने से ये दोनों पन्थ प्रथम उत्पन्न हुए हैं। प्रागे कुछ समय के बाद जग मूल भागवतधर्म का प्रवृत्ति मार्ग या कर्मयोग लुप्त हो गया और उसे भी केवल विष्णु-भक्तिप्रधान अर्थात् भनेक अंशों में निवृत्तिप्रधान श्याधुनिक स्वरूप प्राप्त हो गया, पर्व इसी के कारण जम वृथाभिमान से ऐसे झगड़े क्षेने जगे कि तेरा देवता 'शिव' ई और मेरा देवता विष्णु', तब मात । और 'भागवत' शम्न क्रमशः 'शैव' और 'वैमाघ ' शब्दों के समानार्थक हो गये और अन्त में आधुनिक भागवतधर्मियाँ का चेदान्त (देत या विशिष्टाहत) भिन्न हो गया तथा घेदान्त के समान ही ज्योतिष अर्थात एकादशी एवं चन्दन लगाने की रीति तक स्मार्स मार्ग से निराली हो गई । फिन्तु स्मात ' शब्द से ही व्यक होता है, कि यह भए सच्चा बार मूल का (पुराना) नहीं है । भागवतधर्म भगवान का ही प्रवृत्त किया हुआ है। इसलिये इसमें कोई साक्षयं नहीं, कि इसका उपास्य देव भी श्रीकृष्ण या विष्णु है, परन्तु 'स्मात' शब्द का धात्वर्प स्मृत्युक्त' - फेवल इतना ही-होने के कारणा यह नहीं कहा जा सकता कि स्मात-धर्म का उपास्य शिव ही होना चाहिये । क्योंकि मनु आदि प्राचीन धर्मग्रन्धों में यह नियम कहीं नहीं है, कि एक शिव की ही उपासना करनी चाहिये । उसके विपरीत, विष्णु का ही वर्णन अधिक पाया जाता है और कुछ स्थलों पर तो गणपति प्रभृति को भी उपास्य वालाया है। इस के सिवा शिव और विष्णु दोनों देवता वैदिक हैं अर्थात् बेद में ही एनका वर्णन किया गया है, इसलिये इनमें से एक को ही स्मात फहना ठीक नहीं है । श्रीशङ्क- राचार्य स्मात मत के पुरस्कर्ता कहे जाते हैं, पर शाक्षर मठ में उपास्य देवता शारदा है और शार भाष्य में जहाँ जहाँ प्रतिमा-पूजन का प्रसंग छिड़ा है। वहाँ वहाँ प्राचार्य ने शिवलिंग का निर्देश न कर शाजमाम अर्थात् विष्णु-प्रतिमा
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