पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/४११

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३७२ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । नहीं लगा; या बुद्ध के शाप से उसका ससुर मर गया तो भी उसे मनुष्यहत्या का पातक छू तक नहीं गया; अथवा माता को मार डालने पर भी परशुराम के हाय से मातृहत्या नहीं हुई। उसका कारण भी वही तत्व है जिसका उल्लेख पर किया गया है। गीता में अर्जुन को जो यह उपदेश किया गया है कि " तेरी बुद्धि यदि पवित्र और निर्मल हो तो फलाशा छोड़ कर केवल क्षात्रधर्म के अनुसार युद्ध में भीम और द्रोण को मार डालने से भी,न तो तुझे पितामह के वध का पातक लगेगा और न गुरुहत्या का दोप; क्योंकि ऐसे समय ईश्वरी सङ्केत की सिद्धि के लिये तू तो केवल निमित्त हो गया है" (गी. ११.३३), इसमें भी यही तत्व भरा है। व्यवहार में भी हम यही देखते हैं कि यदि किसी लरूपती ने, किसी भिखमा के दो पैसे छीन लिये हों तो उस लखपती को तो कोई चोर कहता नहीं; उलटा यही समझ लिया जाता है कि मिखारी ने ही कुछ अपराध किया होगा कि जिसका लखपती ने उसको दण्ड दिया है । यही न्याय इससे भी अधिक समर्थक रीति से या पूर्णता से स्थितप्रज्ञ, अर्हत और भगवद्भक्त के वर्ताव को उपयोगी होता है। क्योंकि लक्षाधीश की बुद्धि एक बार भले ही डिग जाय, परन्तु यह जानी वूझी धात है कि स्थितप्रज्ञ की बुद्धि को ये विकार कभी स्पर्श तक नहीं कर सकते । सृष्टि- कर्ता परमेश्वर सब कर्म करने पर भी जिस प्रकार पाप-पुण्य से अलिप्त रहता है, उसी प्रकार इन ब्रह्मभूत साधु पुरुषों की स्थिति सदैव पवित्र और निष्पाप रहती है। और तो क्या, समय-समय पर ऐसे पुरुष स्वेच्छा अर्थात् अपनी मर्जी से जो- व्यवहार करते हैं, उन्हीं से आगे चल कर विधि-नियमों के निवन्ध बन जाते हैं। और इसी से कहते हैं कि ये सत्पुरुष इन विधि-नियमों के जनक (उपजानेवाले) है वे इनके गुलाम कमी नहीं हो सकते । न केवल वैदिक धर्म में प्रत्युत बौद्ध और क्रिश्चियन धर्म में भी यही सिद्धान्त पाया जाता है, तथा प्राचीन ग्रीक तस्व. ज्ञानियों को भी यह तत्व मान्य हो गया था और अर्वाचीन काल में कान्ट ने.

  • «:A perfectly good will would therefore be equally subject

to objective latvs (viz. laws of good ), but could not be conceived as obliged thereby to act lawfully, becanse of itself from its sub- jective constitution it can only be determined by the conception of good. Therefore no imperatives hold for the Divine will, or in general for a holy will; ought is here out of place, because the volition is already of itself necessarily in unison with the law." Kant's Metaphysic of Morals, p. 31 ( Abbott's trans, in Kant's Theory of Bthies, 6th Ed.) निशे किसी भी आध्यात्मिक उपपत्ति को स्वीकार नहीं करता; तथापि उसने अपने ग्रन्थ में उत्तम पुरुष का ( Superman) जो वर्णन किया है उसमें उसने कहा है कि उलिखित पुरुष भले और युरे से परे रहता है। उसके एक ग्रन्थ का नाम भी Beyond Good and Evil है।