पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/४१८

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सिद्धावस्था और व्यवहार। ३७६ माध्यामिक और माधिभौतिफ मार्ग में जो गहन्य का भेद है उसको यहाँ और योमा सादुलाला पिर पर देना सावश्यक है। नीति की रह से किसी बम की योग्यता, सधया पयोग्यता का विचार दो प्रकार से किया जाता है:-(१) उस फर्म का फेवल याला फल देन कर अर्थात् यह देख करके फि उसका पश्य परिणाम जगन् पर क्या सुभाई या होगा सौर (२) यह देगा पर कि इस फर्म फ करनेवाले की मुदि सांग पासना फैसी थी । पक्षले को अभिभौतिक मार्ग कहते हैं। दूसरे में फिर दो पक्ष होते हैं और इन दोनों के प्रया पृषा नाम है ।गे सिद्धान्त पिछले प्रकरणों में अगलाय ना उफ हैं कि, शुद्ध फर्म होने के लिये यासगात्मक-नि शुभ रगनी पड़ती है और वासनात्मक बुद्धि को शुद्ध रपने के लिये व्यवसायात्मसभान कार्ग मकान का निमांग करनेवाली बुद्धि भी रिघर, सम और शुभ रहनी चाहिये । इन सिमान्तों के अनुसार किसी के भी पमों की शुभता जाँचने के लिये देना पड़ता है कि उसकी गासनात्मक-मन्दि शुरः ई या नहीं, और वासनात्मप-युधि की शुद्धता जांचने लगे तो अन्त में देशना दी पड़ता कित्यवसायात्मक युधि शुभ या अशुन्छ । सारांश, कता की शुद्धि अर्थात् पासना की शुद्धता का निर्णय अन्त में व्यवसायात्मक बुद्धिकी शुद्धता से ही करना पड़ता (जी. २. ४) । इसी व्यवसायात्मक-युधि को सदसहिवेचन शक्ति के रूप में स्वतता देवता मान लेने से यह साविक गार्ग हो जाता है। परन्तु यदि स्यान्ता दंपत नदी के किन्नु मात्मा का एक सन्तरिन्द्रिय अतः युधि को प्रधानता न दे फर, आत्मा को प्रधान मान करके चालना की शुद्धता का विचार फाने से यह नीति में निगांय का सारा मार्ग को जाता है । घमारे शास्त्र- फारों का मत है कि इन सब मागी में आध्यात्मिक मार्ग प्रेड और प्रसिद्ध जर्मन रावयेता कान्ट ने यापि महात्मय का सिन्हान्त स्पष्ट रूप से नहीं दिया है, समापि दसने अपने नीतिशान के विवेचन का मारम्भ शुनयुति से प्रति एकप्रकार से, सध्यात्मटि से भी किया एवं उसने इसकी उपपति भी दी है कि ऐसा क्यों करना चाहिये । मीन का अभिप्राय भी ऐसा ही है। पान्तु इस विषय की पूरी पूरी मानवीन इस प्रोटे से अन्य में नहीं की जा सकती। हम चौधे प्रकरण में दो एक उदाहरण दे कर स्पट दिखला जुफे ई कि नीतिमत्ता का पूरा निर्णय करने के लिये फर्म के बाहरी फल की अपेक्षा फां की शुन्द शुद्धि पर विशेष लक्ष देना पड़ता है और इस सम्बन्ध का अधिक विचार आगे, पन्द्रहवें प्रकरण में पाभात्य और पौरस्त्य नीति-मार्गों की तुलना करते समय, किया जायेगा । अभी इतना ही कहते हैं कि कोई भी फर्म तभी होगा, जब कि पहले उस कर्म के करने की पुदि उत्पन हो, इसलिये कर्ग की योग्यता-सयोग्यता का विचार भी सभी अंशों • Ses Kant's Theory of Ethias, trans, by Abbott, 6th ed, especially Zetaplysis of llorals therein.