४०६ गतिारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । 'हे महाराज ! मुझे कृपा कर बतलाइये कि ब्रह्म किसे कहते हैं, तब बाह कुछ भी नहीं बोले। वाप्कलि ने फिर वही प्रश्न किया, तो भी वाह चुप ही रहे! जब ऐसा ही चार पाँच बार हुआ तव बाट ने याकाल से कहा " अरे ! मैं तेरे प्रश्नों का उत्तर तभी से दे रहा हूँ, परन्तु तेरी समझ में नहीं आया-मैं क्या करूं? ब्रह्म-स्वरूप किसी प्रकार बतलाया नहीं जा सकता। इसलिये शान्त होना अर्थात् चुप रहना ही सच्चा ब्रह्म-लक्षण है! समझा ? " (वसू. शांभा. ३.२.३७)। सारांश, जिस दृश्य-सृष्टि-विलक्षण, अनिर्वाच्य और अचिन्त्य परब्रह्म का यह वर्णन है- कि वह मुँह बन्द कर बतलाया जा सकता है, आँखों से दिखाई न देने पर उसे देख सकते हैं, और समझ में न आने पर वह मालूम होने लगता है (केन. २.११)- उसको साधारण बुद्धि के मनुष्य कैसे पहचान सकेंगे और उसके द्वारा साम्यावस्या प्राप्त हो कर उनको सद्गति कैसे मिलेगी? जव परमेश्वर स्वरूप का अनुभवात्मक और यथार्थ ज्ञान ऐसा होवे, कि सब चराचर सृष्टि में एक ही आत्मा प्रतीत होने लगे, तभी मनुष्य की पूरी उन्नति होगी; और यदि ऐसी उन्नति कर लेने के लिये तीव्र बुद्धि के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग ही न हो, तो संसार के लाखों-करोड़ों मनुष्यों को ब्रह्म-प्राप्ति की आशा छोड़ चुपचाप बैठ रहना होगा! क्योंकि, बुद्धिमान् मनुष्यों की संख्या हमेशा कम रहती है। यदि यह कहें कि बुद्धिमान् लोगों के कथन पर विश्वास रखने से हमारा काम चल जायगा, तो उनमें भी कई मतभेद दिखाई देते हैं और यदि यह कह कि विश्वास रखने से काम चल जाता है, तो यह वात आप ही आप सिद्ध हो जाती है, कि इस गहन ज्ञान की प्राप्ति के लिये “ विश्वास अथवा श्रद्धा रखना " भी बुद्धि के अतिरिक कोई दूसरा मार्ग है। सच पूछो तो यही देख पड़ेगा, कि ज्ञान की पूर्ति अथवा फलदूपता श्रद्धा के विना नहीं होती । यह कहना-कि सब ज्ञान केवल बुद्धि ही से प्राप्त होता है, उसके लिये किसी अन्य मनोवृचि की सहायता आवश्यक नहीं-उन पंडितों का वृथाभिमान है जिनकी बुद्धि केवल तर्कप्रधान शास्त्रों का जन्म भर अध्ययन करने से कर्कश हो गई है। उदाहरण के लिये यह सिद्धान्त लीजिये की कल सबेरे फिर सूर्योदय होगा। हम लोग इस सिद्धान्त के ज्ञान को अत्यन्त निश्चित मानते हैं। क्यों? उत्तर यही है, कि हमने और हमारे पूर्वजों ने इस क्रम को हमेशा अखंडित देखा है। परंतु कुछ अधिक विचार करने से मालूम होगा, कि हमने अथवा हमारे पूर्वजों ने अब तक प्रतिदिन सबेरे सूर्य को निकलते देखा है, यह वात कल सवेरे सूर्योदय होने का कारण नहीं हो सकती; अथवा प्रतिदिन हमारे देखने के लिये या हमारे देखने से ही कुछ सूर्योदय नहीं होता; यथार्थ में सूर्योदय होने के कुछ और ही कारण हैं। अच्छा, अब यदि हमारा सूर्य को प्रतिदिन देखना कल सूर्योदय होने का कारण नहीं है, तो इसके लिये क्या प्रमाण है कि कल सूर्योदय होगा? दीव काल तक किसी वस्तु का क्रम एक सा अबाधित देख पड़ने पर, यह मान लेना भी एक प्रकार निवास या
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