1 गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । भी, संकट समय का आचरण-ही प्रधान साधन है, तथापि कवल इस वाश आचरण द्वारा ही नीतिमत्ता की अचूक परीक्षा हमेशा नहीं हो सकती । क्योंकि उक्त नकुलोपाख्यान से यह सिद्ध हो चुका है कि यदि वाह्य कर्म छोटा भी हो तथापि विशेष अवसर पर उसकी नैतिक योग्यता बड़े कर्मों के ही बराबर हो जाती है। इसी लिये हमारे शास्त्रकारों ने यह सिदान्त किया है कि बाह्य कम चाहे छोटा हो या बड़ा, और वह एक ही को सुख देनेवाला हो या अधिकांश लोगों को, यसको केवल बुद्धि की शुद्धता का एक प्रमाण मानना चाहिये इससे अधिक महत्व उसे नहीं देना चाहिये किन्तु उस बाह्य कर्म के आधार पर पहले यह देख लेना चाहिये कि कर्म करनेवाले की वृद्धि कितनी शुद्ध है। और, अन्त में इस रीति से व्यक होनेवाली शुद्ध बुद्धि के आधार पर ही रक कर्म की नीतिमत्ता का निणय करना चाहिये यह निणय केवल बाह्य कमी को देखने से टीक ठीक नहीं हो सकता । यही कारण है कि 'कर्म की अपेक्षा बुद्धि श्रेष्ट है' (गी. २.४८) ऐसा कहकर गीता के कर्मयोग में सम और शुद्ध बुद्धि को अर्थात् वासना को ही प्रधानता दी गई है। नारदपञ्चरात्र नामक मागवतधर्म का गीता से भी अवांचीन एक अन्य है। इसमें मार्कडेय नारद से
i मानत प्राणिनामेव सर्वकर्मककारणन् । मनोनुरूपं वाच्यं च वाक्येन प्रसुलं मनः ॥ अर्थात् " मन ही लोगों के सब कर्मों का एक (मूल) कारण है । जैसा मन रहता है वैसी ही बात निकलती है, और वातचीत से नन प्रगट होता है" (ना. पं.१.७.८)सारांश यह है किमन (अर्थात् मन का निश्चय ) सत्र से प्रयम है, उसके अनन्तर सब कम हुआ करते हैं। इसीनिये कर्म-अकर्म का निर्णय करने के लिये गीता के शुद्ध-बुद्धि के सिद्धान्त को ही वौद्ध अन्यारों ने स्वीकृत किया है। उदाहरणार्थ, धम्मपद नामक मादधर्माय प्रसिद्ध नीति-अन्य के प्रारम्न में ही कहा मनोपुवंगंमा पम्मा मनोसेवा (श्रेष्टा ) मनोमा । मनसा च पदुद्देन मासति वा करोति वा । ततो ने दुक्समन्वेति चकनु वहतो पदं ॥ अर्याद" मन यानी मन का व्यापार प्रयम है, उसके अनन्तर धर्म-अधर्म का आवरण होता है। ऐसा कम होने के कारण इस काम में मन ही मुख्य और श्रेष्ट है, इसलिये इन सब धर्मों को मनोमय ही समझना चाहिये, अयाद कर्चा का मन जिस प्रकार शुद्ध या दुष्ट रहता है उसी प्रकार उसके मापण और कर्म भी मले- बुरे हुना करते हैं तथा उसी प्रकार आगे उसे सुखदुःख मिलता है।" इसी
- पाली नापा के इस शो शामिन्न भिन्न लोग मिव निन्न य करते हैं। परन्तु
बध तक हम समझते हैं, इस गेम की रचना दी तत्त्व पर की गई है, कि कन-अकर्म का .