आदि। गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । नहीं किया गया है, तथापि भाष्यकार यह मानते हैं, कि कुछ सूत्रों में स्मृति' शब्द से भगवद्गीता ही का निर्देश किया गया है । जिन ब्रह्मसूत्रों में, शांकर-भाष्य के अनुसार, 'स्मृति शब्द से गीता ही का उल्लेख किया गया है, उनमें से नीचे दिये हुए सूत्र मुख्य हैं:- ब्रह्मसूत्र-अध्याय, पाद और सूत्र। गोता-अध्याय और श्लोक । १.२.६ स्मृतेश्च । गीता १८.६१" ईश्वरः सर्वभूतानां" आदि सोक। १.३.२३ अपिच स्मर्यते। गीता १५.६ "न तद्रासयते सूर्य: "मा० २. १.३६ उपपद्यते चाप्युपलभ्यते च । गीता १५.३."न रूपमस्यह तथोपलभ्यते" आदि। २.३.४५ अपि च स्मर्यते । ५.१ गतिा ७. " ममैवांशो जीवलोकजीव- भूतः०" आदि। ३.२. १७ दर्शयति चाथो अपि स्मयते। गतिा १३.१२. 'शेयं यत्तत् प्रवक्ष्यामि' मा० ३.३.३१ अनियमः सवीसामविरोधः गोठा ८.२६ " शुरुकृष्णे गती येते." शब्दानुमानाभ्याम् । ४,१.१०स्मरति च। गतिा ६.११ "शुची देशे०" आदि० । ४.२,२१ योगिनःप्रति च स्मर्यते। गीता ८.२३ “यत्र कालेत्वनावृत्तिमावृत्ति चैव योगिनः"आदि। उपर्युक्त आठ स्थानों में से कुछ यदि संदिग्ध भी माने जाय, तथापि हमारे मत से तो चौथे (बसू. २. ३. ४५) और आठवे ( असू. ४. २.२१) के विषय में कुछ भी सन्देह नहीं है। और, यह मी स्मरण रखने योग्य है, कि इस विषय में- शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य और वल्लभाचार्य-चारों भाप्यकारों का मत एक ही सा है । ब्रह्मसूत्र के उक्त दोनों स्थानों (ब्रसू. २. ३. ४५ और ४. २. २ ) के विषय में इस प्रसंग पर भी अवश्य ध्यान देना चाहिये-जीवात्मा और परमात्मा के परस्पर सम्बन्ध का विचार करते समय, पहले " नात्माऽश्रुतेर्नि- स्थत्वाच्च ताभ्यः " (असू. २.३.१७) इस सूत्र से यह निर्णय किया है, कि सृष्टि के अन्य पदार्थों के समान जीवात्मा परमात्मा से उत्पन्न नहीं हुमा है उसके बाद " अंशो नानाव्यपदेशात्०१(२.३.४३) सूत्र से यह बतलाया है, कि जविात्मा परमात्मा ही का 'अंश' है, और भागे. " मंसवणाच" (२.३.४४) इस प्रकार श्रुति का प्रमाण देकर, अन्त में " अपि च स्मर्यते " (२.३.४५)-"स्मृति में भी यही कहा है"-इस सूत्र का प्रयोग किया गया है। सब भाप्यकारों का कथन है, कि यह स्मृति यानी गीता का " ममैवांशो जीवलोंके जीवभूतः सनातनः " (गी. १५. ७) यह वचन है। परन्तु इसकी अपेक्षा अंतिमस्थान (भान ब्रह्मसूत १.२.२१) और भी अधिक निस्सन्देह है। यह पहले है, दसवें प्रकरण में,
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