पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६१५

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गीतारहस्य अपया फर्मयोग-परिशिष्ट । जाने का मार्ग'-निरीमान नहायादारगयक उपनिषद (१.१..) में सन दिया कि जिस प्रकार को अपनी पनी प्रोट पर उसकी गार परवा महीनी. देवी प्रकार जय को मनुष्य इस स्थिति में पहुंच जाना नामी अपने शरीर की कर प्रि-गान जी और पीरटांग पर अगली भिन्नु न मान करणे गमय सुनिल उगगुन के प्रत्येक माह में लिया गया है। यदिकाम का यह मार (arti.m..). "EPAL Tre. पुगयो मदेव मनित रहना (B.१.४.२२)सनिय माया नया स्तृियधमतीने पाक का भी देर नहीं लगता", धमददगा या नोंदवलापा गया (म.२५ सौर मिदिमा १.१. देगे)। सारांश, परि मा मामा मानन्द पद को मान्य नहीं पा पारि मन को शांत, घिरम. रामा निसाम करना प्रमुख मोह-मानिकगिन माधनों का समितों में पान ६. धीमान पुन मा निमामि के शिप भी भारपानी निवार पनि गया परन्गमियों . पान मानसिक गिपति की टिमको मौरीकरण परगयी यहारी के संबंध में. नाम मनमा के परम सारा पाने के विपर में, पदिय अन्याय भन के जो मिलान येही यारधर्म में ले गये। परन्तु यदिकधर्म गानम पुर में पहले का नाम पिर में कोई नहीं दिविचार ममत में दिकन करा। मंदिफ तदा पर न्यान-धीही मिना या गगन काय देना पारियांगासायिय पर ने क्या काम-नाम- विचार के नायजान ही माय न देर सांसारिक सुगों के मालित मादित्य धार पर ही यारि मादधन गदा किया गया समातिएमा सना शाहिये, रिकॉट सरी माधुनिक पश्चिमी पंदिनों नि माशिमानिस धर्म के अनुसार- भपा गीताधर्म के भनुमार मी-पादधर्म नूर में प्रतिमधान नहीं है। यह मकि युद्ध को टमनिषदों के समान ही साधिक Eि' मान्य नहीं है। परन्तु गृहद्वारगयफ डानिषद (१. ४.६)में पति पाशवनर का यह मिद्धांत फि. "संसार से बिलकुल बंद करके मन को निर्विषय नया निकाम करना हो एल जगन में मनुष्य का यात एक परन नाय" पौद में मसायर समा गया है। इसी लिये बांधनं मूल में केवल संन्यास प्रधान हो गया है। पनि युद्ध के ममग्न उपदेशों का साप यह कि संसार फा न्याग किय दिना, कंवल महामाश्रम में ही बने रहने में, परमानुस तपा महताया कमी प्रात ही नहीं सकती; तथापि यह न समझ लेना चाहिये कि उसने गारव्या पनि का बिलकुल पिशन ही नहीं है। जो मनुष्य पिना भिन्नु पर्ने, ब, उसके पन र बौद भिन्तुओं के प्रांत मला या मालियां, इन तीनों पर. विधाम रखे। और "युद्धं शरणं गन्द्रामि, धर्म शरण गन्द्रामि, मंचं शरणं गधामि" इस संकल्ल