गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । 8 आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः। आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥ २९ ॥ देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत। तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ ३०॥ (२९) मानों कोई तो आश्चर्य (अद्भुत वस्तु) समझ कर इसकी और देखत है, कोई आश्चर्य सरीखा इसका वर्णन करता है, और कोई मानों माश्चर्य समझ कर सुनता है । परन्तु (इस प्रकार देख कर, वर्णन कर और) सुन कर भी (इनमें) कोई इसे (तत्वतः) नहीं जानता है। 1 [अपूर्व वस्तु समझ कर बड़े-बड़े लोग आश्चर्य से आत्मा के विषय में कितना ही विचार क्यों न किया करें पर उसके सच्चे स्वरूप को जाननेवाले लोग बहुत ही थोड़े हैं। इसी से यहुतेरे लोग मृत्यु के विषय में शौक किया करते हैं। इससे तू ऐसा न करके, पूर्ण विचार से आत्मस्वरूप को यथार्य रीति पर समझ के और शोक करना छोड़ दे। इसका यही अर्थ है। कोपनिषद् (२.७) में भामा का वर्णन इसी ढंग का है।] (२०) सब के शरीर में (रहनेवाला) शरीर का स्वामी (आत्मा) सर्वदा अवष्य अर्थात कमी मी वध न किया जानेवाला है। अतएव हे भारत (अर्जुन)! सब अर्थात् किसी भी प्राणी के विषय में शोक करना तुझे उचित नहीं है। [अब तक यह सिद्ध किया गया, कि सांख्य या संन्यास मार्ग के तत्वज्ञाना- नुसार आत्मा अमर है और देह तो स्वभाव से ही अनित्य है, इस कारण कोई मरे, या मारे उसमें, शोक' करने की कोई आवश्यकता नहीं है। परन्तु यदि कोई इससे यह अनुमान कर ले, कि कोई किसी को मारे तो इसमें भी 'पाप' नहीं तो यह भयङ्कर भूल होगी। मरना या मारना, इन दो शब्दों के अयों का यह पृथक्करण हैं, मरने या मारने में जो डर लगता है उसे पहले दूर करने के लिये ही यह ज्ञान बतलाया है । मनुष्य तो आत्मा और देह का समुच्चय है । इनमें आत्मा अमर है, इसलिये मरना या मारना ये दोनों शब्द उसे उपयुक्त नहीं होते । वाकी रह गई देह, सो वह तो स्वमाव से ही अनित्य है, यदि उसका नाश हो जाय शोक करने योग्य कुछ है नहीं। परन्तु यदृच्छा या काल की गति से कोई मर लावे या किसी को कोई मार ढाले, तो उसका सुख-दुःख न मान कर शोक करना छोड़ दें, तो भी इस प्रश्न का निपटारा हो नहीं जाता, कि युद्ध जैसा घोर कर्म करने के लिये जान बूझ कर, प्रवृत्त होकर लोगों के शरीरों का नाश हम च्चों करें। क्योंकि देह यद्यपि अनित्य है तथापि आत्मा का पका कल्याण या मोन सम्पादन कर देने के लिये देह ही तो एक साधन है, अतएव आत्महत्या करना अथवा बिना योग्य कारणों के किसी दूसरे को मार डालना, ये दोनों शास्त्रानुसार घोर पातक ही हैं । इसलिये मरे हुए का शोक करना यद्यपि रचित
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