गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशाख । कामों की अनेक वार ऐसे मौके पाते हैं कि, इस समय उक्त साधारण नियमों में से दो या अधिक नियम एकदम लागू होते हैं। उस समय “ यह करूं या वह करूं" इस चिन्ता में पड़ कर मनुष्य पागल सा हो जाता है । अर्जुन पर ऐसाधी मौका पा पड़ा था परन्तु अर्जुन के सिवा और लोगों पर भी, ऐसे कठिन अवसर अक्सर आया करते हैं। इस बात का मार्मिक विवेचन महाभारत में, कई स्यानों में किया गया है । उदाहरणार्थ, मनु ने सब वर्ण के लोगों के लिये नीतिधर्म के पाँच नियम बतलाये हैं- अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः" (मनु १०.६३) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, काया वाचा और मन की शुद्धता, एवं इन्द्रिय- निग्रह । इन नीतिधर्मों में से एक अहिंसा ही का विचार कीजिये । “अहिंसा परमो धर्मः" (ममा. था. ११.३) यह तस्व सिर्फ हमारे वैदिक धर्म ही में नहीं किन्तु अन्य सब धर्मों में भी, प्रधानमाना गया है । बौद्ध और ईसाई धर्म ग्रंथों में जो आज्ञाएं हैं उनमें अहिंसा को, मनु की मात्रा के समान, पहला स्थान दिया गया है। सिर्फ़ किसी की जान ले लेना ही हिंसा नहीं है। उसमें किसी के मन भयवा शरीर को दुःख देने का भी समावेश किया जाता है । अर्थात, किसी सचे. तन प्राणी को किसी प्रकार दुःखित न करना ही आइसा है । इस संसार में, सय लोगों की सम्मति के अनुसार यह अहिंसा धर्म, सब धर्मों में, श्रेष्ठ माना गया है। परन्तु अब कल्पना कीजिये कि हमारी जान लेने के लिये या हमारी स्त्री अथवा कन्या पर बलात्कार करने के लिये, अथवा हमारे घर में आग लगाने के लिये, या हमारा धन छीन लेने के लिये, कोई दुष्ट मनुष्य हाथ में शस्त्र ले कर तैयार हो जाय और उस समय हमारी रक्षा करनेवाला इमारे पास कोई न हो तो उस समय हमको क्या करना चाहिये ?--क्या "अहिंसा परमो धर्मः" कह कर ऐसे आत- तायी मनुष्य की उपेक्षा की जाय? या, यदि वह सीधी तरह से न माने तो यथा- शकि उसका शासन किया जाय? मनुजी कहते हैं- गुरु वा वालवृद्धौ वा ब्राह्मण वा बहुश्रुतम् । माततायिनमायान्तं इत्यादेवाविचारयन् ।। अर्थात् " ऐसे आततायी या दुष्ट मनुष्य को अवश्य मार डाले; किन्तु यह विचार न करे कि वह गुरु है, बूढा है, वालक है या विद्वान् बाह्मण है" शास्त्रकार कहते हैं कि (मनु ८.३५०) ऐसे समय हत्या करने का पाप इत्या करनेवाले को नहीं लगता, किन्तु आततायी मनुष्य अपने धर्म ही से मारा जाता है। आत्मरक्षा का यह हक, कुच मर्यादा के भीतर, आधुनिक फौजदारी कानून में भी स्वीकृत किया गया है। ऐसे मौकों पर अहिंसा से आत्मरक्षा की योग्यता अधिक मानी जाती है। भ्रूणहत्या सबसे अधिक निन्दनीय मानी गई है। परन्तु जब बच्चा पेट में टेढ़ा हो कर घटक जाता है तब क्या उसको काट कर निकाल नहीं डालना चाहिये ? यज्ञ में पशु का वध करना वेद ने भी प्रशस्त माना है (मनु ५.३१); परन्तु पिष्ट पशु के द्वारा -
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