पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/७३२

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गीता, अनुवाद और टिप्पणी- ५ अध्याय । शानेन तु तदशानं येषां नाशितमात्मनः । तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥ १६ ॥ तबुद्धयस्तदात्मानस्तनिष्ठास्तत्परायणाः। गच्छन्त्यपुनरावृत्ति ज्ञाननिधूतकल्मषाः ॥१७॥ 88 विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गधि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पंडिताः समदर्शिनः ॥ १८ ॥ इहैव तैर्जितः सगों येषां साम्ये स्थितं मनः । निर्दोष हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १९ ।। १६२-१६५ देखो), वेदान्तियों के मत में आत्मा का अर्थ परमेश्वर है, अतः वेदान्ती लोग परमेश्वर के विषय में भी आत्मा अकता है इस तव का उपयोग करते हैं। प्रकृति और पुरुप ऐसे दो मूल तत्व मान कर सांख्यमत-वादी समझ फर्तृत्व प्रकृति का मानते हैं और आत्मा को उदासीन कहते हैं। परन्तु वेदान्ती लोग इसके आगे बढ़ कर यह मानते हैं, कि इन दोनों ही का मूल एक निर्गुण परमेश्वर है और वह साण्यवालों के प्रात्मा के समान उदासीन और अकती है एवं सारा कर्तृत्व माया (अर्थात् प्रकृति) का है (गीतार. पृ. २६७) । अज्ञान के कारण साधारण मनुष्य को ये वातें जान नहीं पड़ती; परन्तु कर्मयोगी कर्तृत्व और अकर्तृत्व का भेद जानता है। इस कारण वह कर्म करके भी अलिस ही रहता है, अब यही कहते हैं-] (१६) परन्तु ज्ञान से जिनका यह अज्ञान नष्ट हो जाता है उनके लिये उन्ही व्य ज्ञान परमार्थ-तरव को, सूर्य के समान, प्रकाशित कर देता है। (१७) और उस पर. मार्थ-तत्व में ही जिनकी बुद्धि रंग जाती है, वहीं जिनका अन्तःकरण हम जाता है और जो तनिष्ठ एवं तत्परायण हो जाते हैं, उनके पाप ज्ञान से विलकुल धुल जाते हैं और वे फिर जन्म नहीं लेते। [इस प्रकार जिसका अज्ञान नष्ट हो जाय, उस कर्मयोगी की (संन्यासी की नहीं) ब्रह्मभूत या जीवन्मुक्त अवस्था का श्रम अधिक वर्णन करते हैं- (11) पण्डितों की अर्थात ज्ञानियों की दृष्टि विद्या-विनययुक्त वाहाण, गाय, हाथी, ऐसे ही कुत्ता और चाण्डाल, सभी के विषय में समान रहती है ! (8) इस प्रकार जिनका मन साम्यावस्था में स्थिर हो जाता है, वे यहीं के यहीं, अर्थात मरण की प्रतीक्षा न कर, मृत्युलोक को जीत लेते हैं। क्योंकि ब्रह्म निषि और सम है, अतः ये (साम्य-बुद्धिवाले) पुरुष (सदैव) ब्रा में स्थित, अर्थात यहीं के यही ब्रह्मभूत, हो जाते है। i [जिसने इस तरव को जान लिया कि प्रात्मस्वरूपी परमेश्वर अकर्चा है और सारा खेल प्रकृति का है, वह ब्रह्मसंस्थ' हो जाता है और उसी को मोक्ष मिलता है- ब्रह्मसंस्थोऽमृतत्वमेति' (२. २३.१), उक वर्णन