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पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/७५०

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गीता, अनुपाद और टिप्पणी -६ अध्याय । 46 श्रीभगवानुवाच । पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । नहि कल्याणकरकश्चिद्दुगत तात गच्छति ॥ ४० ॥ प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुपित्वा शाश्वतो. समा। शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ ४१ ॥ अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुलंमतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥४२॥ फरता है, इस कारण ३० चे श्लोक के प्रयति ' शब्द का अर्थ " अल्प अर्थात् अधूरा प्रयत्न या संयम करनेवाला " है । ३८ वे शोक में जो कहा है, कि " दोनों ओर का प्राश्रय छूटा हुआ" प्रयवा इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्टः", उस. का अर्थ भी कर्मयोग-प्रधान ही करना चाहिये। कर्म के दो प्रकार के फल हैं:(१) काम्ययुद्धि से किन्तु शास्त्र की प्राशा के अनुसार कर्म करने पर तो स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और (२) निष्काम युद्धि से करने पर वह बन्धक न होकर मोक्ष- दायक हो जाता है। परन्तु इस अधूरे मनुष्य को कर्म के स्वर्ग आदि काम्य फल नहीं मिलते, क्योंकि उसका ऐसा हेतु ही नहीं रहता; और साम्य बुद्धि पूर्ण न होने के कारण उसे मोक्ष मिल नहीं सकता; इसलिये अर्जुन के मन में यह शिक्षा उत्पन हुई कि उस बेचारे को न तो स्वर्ग मिला और न मोक्ष-कहीं उसकी ऐसी स्थिति तो नहीं हो जाती कि दोनों दीन से गये पौड़े, हलुवा मिले न मॉडे? यह शक्षा केवल पातंजल योगरूपी फर्मयोग के साधन के लिये ही नहीं की जाती अगले अध्याय में वर्णन है, कि कर्म-योगसिद के लिये आवश्यक साम्यवाद कभी पातंजल योग से, कभी भक्ति से और कभी ज्ञान से प्राप्त होती है और जिस प्रकार पातंजल योगरूपी यह साधन एक ही जन्म में अधूरा रह सकता 1, उसी प्रकार भक्ति या ज्ञानरूपी साधन भी एक जन्म में अपूर्ण रह सकते हैं। अतएव कहना चाहिये, कि अर्जुन के उक्त प्रक्ष का भगवान ने जो उत्तर दिया है, वह कर्मयोगमार्ग के सभी साधनों को साधारण रीति से उपयुक्त हो सकता है। श्रीभगवान् ने कहा-(४०) हे पार्थ! क्या इस लोक में और क्या परलोक में, ऐसे पुरुप का कभी विनाश होता ही नहीं। क्योंकि हे तात ! कल्याणकारक कर्म करनेवाले किसी भी पुरुष की दुर्गति नहीं होती। (७१) पुण्यकर्ता पुरुषों को मिलनेवाले (स्वर्ग सादि) नोकों को पाकर और (वहाँ) बहुत वर्षों तक निवास करके फिर यह योगभ्रष्ट अर्थात कर्मयोग से भ्रष्ट पुरुष पवित्र श्रीमान लोगों के घर में जन्म लेता है; (४२) अथवा बुद्धिमान् (फर्म-) योगियों के ही कुल में जन्म पाता है । इस प्रकार का जन्म (इस) क्षोक में पड़ा दुर्लभ है।