७४८ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । अपि चेत्सदुराचारी भजते मामनन्यभाक् । साधुरेव स मंतव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥३०॥ क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शमच्छान्ति निगच्छति। कौतय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ।। ३१ ॥ मांहि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः: पापयोनयः । स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति पर गतिम् ॥३२॥ किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्पयस्तथा । अनित्यमसुख लोकाममं प्राप्य भजस्व माम् ॥ ३३ ॥ उनमें हूँ। (३०) बढ़ा दुराचारी ही क्यों न हो, यदि वह मुझे अनन्य भाव से भजता है तो उसे बड़ा साधु ही समझना चाहिये। क्योंकि उसकी बुद्धि का निश्चय अच्छा रहता है । (३१) वह जल्दी धर्मात्मा हो जाता है और नित्य शान्ति पाता है। हे कौन्तेय! तू खूब समझो रह, कि मेरा भक (कभी भी) नष्ट नहीं होता। H [तीसवें श्लोक का भावार्थ ऐसा न समझना चाहिये, कि भगवत यदि दुराचारी हों, तो भी वे भगवत् को प्यारे ही रहते हैं। भगवान् इतना ही कहते हैं कि पहले कोई मनुष्य दुराचारी भी रहा हो, परन्तु जब एक बार उसकी बुद्धि का निश्चय परमेश्वर का भजन करने में हो जाता है, तब उसके हाथ से फिर कोई भी दुष्कर्म नहीं हो सकता; और वह धीरे-धीरे धर्मात्मा हो कर सिद्धि पाता है तथा इस सिद्धि से उसके पाप का येलकुल नाश हो जाता है। सारांश, छठे अध्याय (६.४४) में जो यह सिद्धान्त किया था, कि फर्मयोग के जानने की सिर्फ इच्छा होने से ही, लाचार हो कर, मनुष्य शब्दब्रह्म से परे चला जाता है, अब उसे ही भक्तिमार्ग के लिये लागू कर दिखलाया है। अब इस बात का अधिक खुलासा करते हैं कि परमेश्वर सब भूतों को एक सा कैसे है-] (१२) क्योंकि हे पार्थ! मेरा आश्रय करके स्त्रियाँ, वैश्य और शूद अथवा (अन्त्यन आदि) जो पापयानि हो वे भी, परम गति पाते हैं। (३३) फिर पुण्यवान् ब्राह्मणों की, मेरे भक्तों की और राजर्पियों (क्षत्रियों) की बात क्या कहनी है? तू इस अनित्य और असुख अर्थात् दुःखकारक (मृत्यु-)लोक में है, इस कारण मेरा भजन कर। । [३२ श्लोक के 'पारयोनि' शब्द को स्वतन्त्र न मान कुछ टीकाकार कहते हैं कि वह नियों, वैश्यों और शूद्रों को भी लागू है। क्योंकि पहले कुत्र न कुछ पाप किये बिना कोई भी त्री, वैश्य या शूद्र का जन्म नहीं पाता। उनके मत में पापयोनि शब्द साधारण है और उसके भेद बतलाने के लिये स्त्री, वैश्य तथा शूद्र उदाहरणार्थ दिये गये हैं। परन्तु हमारी में यह अर्थ ठीक है। पापयोनि शब्द से वह जाति विवक्षित है. जिले कि आजकल राजदरबार "जरायर पेशा कौन कहते हैं। इस शोक का सिद्धान्त यह है कि इस
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